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तेरापंथ-मन समीक्षा ।
___ अब यह विचारनेकी बात है कि-यदि वह तीर्थका स्थान न होता तो दूसरे अनेकस्थानोंको छोड करके थावच्चापुत्र क्यों वहाँ जाते ? । महानुभाव ! थावच्चा अणगार जैसे पवित्र, महात्मा, तद्भवमुक्तिगामी पुरुष, जो कि ज्ञान-दर्शन-चारित्र वगैरहरूपी यात्राको मानते हैं, उन्होंने भी पुंडरीक पर्वत पर जा करके मुक्तिका लाभ लिया। अन्यत्र नहीं । शत्रुजयका ही पुंडरीक पर्वत नाम है । वह नाम, ऋषभदेव स्वामीके पुंडरीक गणधर पांच क्रोड मुनिके साथ चैत्रीपूर्णिमाके दिन मोक्ष गये, तबसे पड़ा है। यह बात गुरुकुलमें रहनेवाले लोगही जान सकते हैं । परन्तु तुम्हारे जैसे स्वयंभू लोग कैसे जान सकते हैं ? । उपमान-उपमेयके नियमसे भी ज्ञान-दर्शन-चारित्ररूपी यात्रासे अन्य यात्रा सिद्ध होती है ।
प्रश्न-.-उत्राधेनरा बारमा अध्येनमें ब्रह्मचरियरूपी तीरथ बनायो और आर श्रेतुर्ना आदी तीर्थ परूपते हो, सो कीस शस्त्रकी रूसे सो बत्रीस श्रुत्रमें पाठ बतलावो--
उत्तर--उत्तराध्ययन मूत्रके पृष्ठ ३७७ में १२ वें अध्यनकी ४६ वी गाथामें तुम्हारे कहनेके मुताबिक बात है। परन्तु वहाँ हरिकेशीजीने, ब्राह्मणोंको हिंसा जन्य--कुरुक्षेत्रादि तीर्थोसे विमुख करनेके लिये उपदेश दिया है। वहाँ उपमा दिखलाते हुए कहा हैः-विनय है मूल जिसका, ऐसा जो धर्म, उस रूपी इद, और ब्रह्मचर्यरूपी निर्मल तीर्थ, उसमें स्नान करनेसे शुद्धि होती है। . . . इत्यादि उपदेशसे गंगा-गोदावरी वगैरह तीका निषेध किया है । परन्तु शत्रुजय, गिरनार इत्यादि पवित्र तीर्थों का