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तेरापंथ-मत समीक्षा ।
"प्रश्न-५ श्री केवलग्यानी जिनेसर देवमें जीवरो भेद गुणांणा ओर डंडक कीसो पावै और ज़िनेस्वर देवकी गती जात काया कीसी और जिनस्वर देवमैः प्रजा प्राण जोग उप्पीयोग लेश्या आत्मा कीतनी कितनी कोनसी कोनसी पावें: और जिनेस्वर देव शनि हैं या अशनि हैं सो उनका उत्र बत्तीस सासत्रसे दिरावै" ।
उत्तर-केवलज्ञानी जिनेश्वरमें गर्भज पंचेन्द्रियका एक भेद है। केवलज्ञानी तीसरे शुक्ल ध्यानमें रहें, वहाँतक उनको तेरहवाँ गुणस्थानक होता है । और जब चतुर्थ शुक्ल ध्यानके पायेमें वर्तते हुए शैलेशी अवस्थामें रहें, उस समय चौदहवाँ गुणस्थानक होता है । १४ वे गुणस्थानकमें पांच अक्षरोंका उच्चारण करें, उतनेही समय रह करके अन्तिम समयमें समस्त काँका क्षय करके सिद्ध गतिमें जाते हैं । केवलज्ञानी मनुष्य दंडकमें लाभे । गति निर्वाणकी । जाती पंचेन्द्रियकी । काय त्रसकाय । पर्याय मनुष्यत्वका । प्राण दस होते हैं, पांच इन्द्रिय, तीनबल, श्वासोश्वास तथा आयुष्य । योग सात १ सत्यमनोयोग, २ असत्यामृषामनो योग, ३ उसी तरह दो वचनके, ४ कार्मणकाययोग (समुद्घातके समय), ५ औदारिककाययोग, ६ औदारिक मिश्रकाययोग ( समुद्घातके समय ), ७ केवलज्ञान तथा केवलदर्शन स्वरूप दो उपयोग होते हैं । तेरहवाँ मुणगणा झे वहाँतक शुक्ललेश्या होती है, चौदहवें गुणस्थानकमें लेश्या नहीं होती । यद्यपि आत्मातो सच्चिदानंदमय है, परन्तु यदि आत्माकी आठ प्रकारसे विवक्षा कीजाय, तो 'कषाय आत्मा' को छोडकरके योगात्मा, उपयोगात्मा, ज्ञानात्मा, दर्शनात्मा, चारित्रात्मा, वीर्यात्मा तथा द्रव्यात्मा ये सात आत्मा हैं। अब