________________
तेरापंथ - मत समीक्षा |
प्रकार नियम किये हैं । उन नियमोंमें यदि जिनमंदिर करानेमें पाप होता तो यह भी नियम कर देते कि - जिनमंदिर कर - वाऊं नही । लेकिन ऐसे नियमके नहीं करनेसे निश्चित होता है कि वे जिनमंदिर बनवानेमें आरंभ नहीं समझते थे । उन श्रावकोंने भी जिनमंदिर बनवाए हैं, इसका पुरावा नंदीसूत्रके ४६५ वें पृष्ठमें यह है : –“ उवासगदसासु णं समणोवासगाणं नगराई उज्जालाई चेइपाई वणसंडाई समोसरलाई रायाणो अम्मापियरो धम्मायरिया धम्मकहाओ...." इत्यादि । इसका मतलब यह है कि - उपासकदशांगसूत्रमें आणंदादि श्रावकोंके नगर, उद्यान, चैत्य ( जिनमंदिर) वनखंड, समवसरण, राजे, मात-पिता, धर्मगुरु तथा धर्मकथा इत्यादि अनेक चीजों का वर्णन है । ऐसे नंदीसूत्र तथा समवायांग में भी कहा है । इससेही सिद्ध होता है कि आनंदादि श्रावकों के वहाँ मंदिर थे। और अगर उन्होंने नहीं बनवाए थे तो ' उनके मंदिर ' ऐसे क्योंकर कहते ? |
३७
""
यहाँ पर 'चैत्य' शब्दका 'ज्ञान साधु ' या ' बगीचा' अर्थ नहीं हो सकता । क्योंकि इन्हीं अर्थों को कहनेवाले 'धर्मकथा' 'धर्मगुरु' तथा ' उद्यान ' शब्द लिये हुए हैं ।
अब संघकी बात यह है कि उस समय में भी गिरिराजश्री शत्रुंजयादि तीर्थ विद्यमान ही थे, तो उस समय के श्रावक अवश्य संघ निकालते थे । संघ निकालनेकी परिपाटी नयी और शास्त्रविरुद्ध नहीं है, यह बात दूसरे प्रश्नमें अच्छी तरह दिखला दी है । हमारी समझमें प्रश्न पूछनेवाले तेरापंथी महानुभाव संघका मतलब ही नहीं समझे हैं। हम पूछते हैं कि