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तेरापंथ-मत समीक्षा।
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पुष्प धूप तथा वस्त्रादिसे अर्चन करते (यावत् ) जिनमंदिरमें विहरते हैं। हे. भगवन् ! वे श्रावक, किस हेतुसे पूजा करते हैं। गौतम ! जो जिन प्रतिमाको पूजता है-उस मनुष्यको सम्यग्दृष्टि जानना । और जो मनुष्य जिनप्रतिमाको नहीं पूजता है, उसको मिथ्यादृष्टि जानना । मिथ्यादृष्टिको ज्ञान-चारित्र-मोक्ष नहीं है। और सम्यग्दृष्टिको ज्ञान-चारित्र-मोक्ष है । अत एव हे गौतम! सम्यग्दृष्टि सुगंध, पुष्प, चन्दन, और विलेपनसे जिन प्रतिमाकी पूजा करते हैं।"
इत्यादि पाठोंसे स्पष्ट सिद्ध होता है कि भगवान्ने द्रव्य पूजा करनेमें धर्म कहा है, तथा आज्ञा फरमाई है । तिस परभी आग्रहको न छोडो, तो तुम्हारे भाग्यकी बात है। प्रतिमाकी पूजा करनेवालेको समकितदृष्टि, और अन्यको मिथ्यादृष्टि दिखलाया, तो फिर इससे अधिक क्या चाहिये ? रायपसेणी, जीवाभिगम, माता इत्यादिमें प्रत्यक्षपाठ विद्यमान हैं, तिसपरभी धर्म तथा आशाका प्रश्न पूछने वाले-आप लोग अभी कैसे अँधेरेमें फिरते हो, इसका स्वयं विचार करो।
"प्रश्न-२ श्रीजिनेसर देवने बतीस सात्रमे कीसी जगा जैनमंदीर करानेमे ओर संग कडानेमै अग्या नहीं फरमाई है न धर्म फरमाय है तो फेर आप ईण दोनां कामांमे धर्म ओर अग्या कीसी सासत्रके रूसे परूपते हो सो बतीस सात्रोमें इनका अधिकार बतलावै।"
उत्तर-हम पूछते हैं कि-जिनेश्वरदेवने जिनमंदिर बनवाने और संघ निकालनेकी आज्ञा और धर्म नहीं फरमाये, ऐसा . ज्ञान आपको कहांसे हुआ ?। क्या सूत्रोंमें ऐसा निषेध आप