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तेरापंथ-मत -समीक्षा।
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एक और भी बात है। अनुकम्पाके विषयमें तेरापंथी कहले हैं कि-'महावीर स्वामी चूक गये । ' ऐसा आचार्य महाराजने कहा तब पंडितजीने तेरापंथी श्रावकोंसें पूछा:-'क्या यह बात सत्य है ? ' । तब ये लोग उड़ानेकी चालाकी करने लगे, तब पंडितजीने फिर कहा:-'जो बात हो, सो बराबर कहिये।" इतने में बाईस टोलेवाले बोल उठे कि-हम उस बातको नहीं मानते हैं।
वे लोग यह कह करके उठ गये थे कि 'आधे घंटेमें प्रश्न भेजेंगे' । परन्तु दूसरे दिनके बारह बजे तक कोई न आया। एक बजे २३ प्रश्नोंका एक लंबा चौडा चिट्ठा ले करके सब लोग आए। पंडितजीको बुलाकरके उन लोगोंने कहा किः-'पंडितजी, इसको पढिर' । पंडितजी पढने लगे। पंडितजीको भी उस चिढेको पढते २ ऐसे २ शब्दोंका ज्ञान और अनुभव होने लगा जो कभी न पढेथे, और न सुने थे । पंडितजी वारंवार यह कहते जाते थे कि-'यह प्रश्न ठीक नहीं है, ''यहाँ पर यह शब्द न चाहिये, 'ये शब्द बिलकुल अशुद्ध है, तब तेरापंथी श्रावक कहने लगेः-'लिखने वालेका यह दोष है।' ठीक ये भी जीवरामभट्टके सच्चे नातेदार ही निकले।
प्रियपाठक ! तेरापंथीके २३ प्रश्न, ज्योंके त्यों, उनके उत्तरोंके साथ दिये जायेंगे, जिससे विदित हो जायगा कि जि. नको भाषाकी भी शुद्धाशुद्धिका ख्याल नहीं है, वे सूत्रों के पामेंको क्या समझ सकते हैं । खैर, अभी उनके २३ प्रश्नोंमेसे कुछ शब्द, नमूमेकी तौर पर यहाँ उद्धृत करना समुचित समशता हूँ। देखिये, 'प्रथमकवले मक्षिकापातः' इस नियमको चरि