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तेरापंथ-मत समीक्षा ।
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एकमके दिन दुपहरको सब लोग उपाश्रयमें आए। आदमियोंकी भीड बहुत हो गई थी, परन्तु सब लोग शान्तचित्तसे श्रवण करते थे। जिनपूजाके विषयमें बहुत चर्चा हुई। तेरापंथी तथा ढूंढियोंकी तरफसे यह प्रश्न उठा कि-'प्रश्नव्याकरणमें देवमंदिर तथा प्रतिमा करानेवाला मंदमति है, ऐसा कहा है, इसका क्या कारण ?।' __ इसरे उत्तरमें यह कहा गया कि-" साधु चैत्यकी वैयावच्च करे, ऐसे पाठोंके साथ, उपयुक्त पाठका विरोध आता है। इस लिये पूर्व जो आश्रवद्वार है, उसके अधिकारि अनार्य लोग दिखलाये हैं। अत एव जहां देवमंदिर-प्रतिमा वगैरह जो २ बातें हैं, वे अनायके लिये समजना । देवमंदिर कहनेसे जिनमंदिर नहीं घट सकता। जिनमंदिर वैसा पाठ यहां नहीं हैं।
ऐसा कहनेसे सब लोग चुप हो गये। पुनः सूर्याभदेवकी पूजा संबंधी प्रश्न उन लोगोंने उठाया । और कहाः-" सूर्याभदेवने जैसे पूजाकी, वैसे मिथ्यात्वी देव तथा अभव्य भी पूजा करते हैं ।”
श्रीमान् पं. परमानन्दजीने कहा:-" पूजा हुई, यह आप स्वीकार करते हैं, सूर्याभदेव समकिति है, यह भी आप स्वीकार करते हैं, तो फिर पूजा समकिती जीवोंकी करणी सिद्ध हुई।" ___इतनेमें एकने कहा:-“मिथ्यात्वी देव पूजा करते हैं, ' अभव्य भी करते हैं । अत एव वह तो देवोंका आचार है ।" __ आचार्य महाराजने कहाः-" महानुभावो ! अभव्य-मिथ्यादृष्टि जिगपतिमाकी पूजा करते हैं, ऐसा कोई पाठ तुम्हारी