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तेरापंथ-मत समीक्षा ।
है । षड़कों भिद्यते मंत्रः, इस नियमानुसार यह बात तीसरेको नहीं कही जा सकती।' - स्त्रीने बराबर हठ पकडी, और कहा:- मुझको अगर अर्थ नहीं कहेंगे, तो मैं समजूंगी कि-आपका मेरे पर विश्वास नहीं है । और प्रेमभी नहीं है।'
स्त्रीके आगे भट्टजीका जोर कहाँ तक चल सकता था ? स्त्रीके आग्रहसे पुरोहितनी कहने लगेः- देख, मैं अर्थ तुझे कहता हूं, परन्तु किसीसे कहना नहीं । मुझको उस श्लोकका अर्थ नहीं आता है, परन्तु मैंने राजाको बहकानेके लिये ‘घी खिचडी' ऐसा अर्थ कह रक्खा है। क्योंकि-वैसा अर्थ कोई पंडित करे नहीं, और राजाकी प्रसन्नता होवे नहीं । बस, इसीसे अपना कामभी जमा रहे ।'
- प्रातःकाल होते ही वह लडका आया और स्त्रीके सामने पूर्वोक्त बात छेडी । लडकेने कहाः- आप सब बातों में प्रवीण हैं, परन्तु आश्चर्य है कि उस श्लोकका अर्थ आपकोभी नहीं आता ।' स्त्रीने झटसे कह दियाः- यह क्या बोलता है, मुझे अर्थ आता है।' लडकेने कहा:-' मैं नहीं मान सकता तिसपरभी अगर आता होवे तो कह दीजिये ।'
स्त्रीकी जाति कहाँ तक अपने हृदयमें गुप्त बात रख सकती है ? स्त्रीने कहा:-'देख ! किसीसे कहना नहीं । उसका अर्थ तो, जो पंडित लोग करते हैं, वही है, परन्तु राजाको बहकाने के लिये 'घी खिचडी' ऐसा अर्थ ठसा दिया है।'
लडकेको उस श्लोकका तात्पर्य जब ठीक २ मिल गया। तब हमेशा समस्त पंडितोंका अपमान देख करके लडकेके मनमें बहुतही ग्लानी उत्पन्न होती थी।