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तेरापंथ-मत समीक्षा ।
उसको कैसे २ मन्तव्य प्रकट करने पड़े यह सब बातें आगे चल करके आप पढ़ेंगे।
तेरापंथ-मतके मन्तव्य ।
तेरापंथियोंने ऐसे २ मन्तव्य प्रकाशित किये हैं, किजिनको सुन करके कैसाभी मनुष्य क्यों न हो, उनके प्रति सम्पूर्ण घृणाकी दृष्टि से देखे विना नहीं रहेगा। बातभी ठीक ही है कि, जिन्होंने दया और दान ये दो परमसिद्धान्तोंकाही शिरच्छेद कर दिया है, वे लोग फिर क्या नहीं कर सकते हैं ? अस्तु ।
यहाँ पर उनके मन्तव्य दिखलाए जायें, इसके पहिले एक और बात कह देना समुचित समझता हूं।
- तेरापंथ-मतके उत्पादक भिखुनजीने जब दया और दान दोनोंको जडसे उखाड करके डाल दिये । तब उसके गुरु तथा
और भी लोग समझातेथे कि-देखो, 'महावीर देवने भी अनुकं. पासे गोशालेको बचाया है। जब उसकी एकभी न चली, तब ' महावीरदेव भूले' ऐसा कहना पडा। अन्तमें यहाँ तक नौबत आई कि-महावीर देवके अवर्णवाद भी बोलने लग गया। उसको यह भी समझाया गया था कि-"तू जो उत्सूत्र - भाषण करके अनुकंपाका निषेध करता है, वह बिलकुल वे
सिर-पैरकी बात है । देखो, उपासकदशांगमें, श्रेणिक राजाने - अनुकंपाके कारण अमारी पटह बजवाया, ऐसे लिखा है ।
रायपसेणीसूत्रमें परदेशी राजाने १२ व्रतका उच्चारण किया, वहाँ परिग्रहपरिमाणका चतुर्थ हिस्सा अनुकम्पा (दानशाला व.