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तेरापंथ-मेत समीक्षा ।
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हुआ, परन्तु भीखमजीके चेले भारमकने श्रद्धा छोडी नहीं । पश्चात् रुघनाथजीने भिखुनजी से कहा :
' बगडी में वखताजी ढुंढिये, वच्छरामजी ओसवाल, राजनगर के श्रावक लालजी पोरवाड, इन तीनोंकी तुमने श्रद्धा हटाई है, इस लिये तुम वहाँ जाकरके ठिकाने लाओ । उन लोगों को तुम ही समझा सकोगे, वहाँसे आप आज्ञा लेकरके East आए । यहाँपर तो आपको 'लेने गई पून तो खोआई खसम' जैसा हुआ । आएये तो वखते ढूंढकको समझाने । परन्तु प्रत्युत वखता ढूंढिया आपहीको उपालम्भ ( ठपका ) देने लगा । वखता ढूंढने कहा:- देखो ! अपने सब करके यह ठीक कियाथा, और फिर तुमे तो रुगनाथजीके पास जाकरके फँस गए। यह क्या किया ?' बस ! ऐसे २ बहुत से बचन सुना करके फिर चक्कर घुमाया। फिर दो चार महीने बाद भिखुनजी रुपनाथजी के पास आए। फिर भी आहार पाणी साथ नहीं किया । तत्र रुपनाथजीके भाई जेमलजीके पास भि खुनजी गए । जेमलजीको और रुपनाथजीको द्वेष हुआ । छे महीने तक पंचायत होती रही। किन्तु अपना मत नहीं छोडा ! भिखुनजीने अंदर अंदरसे साधुओंको और गृहस्थोंको अपने पक्षमें ले लिये थे । रुघनाथजीने प्रायश्चित्त लेकर के समुदाय में रहने को बहुत कुछ कहा | परन्तु अब वह कैसे मान सकताथा । क्योंकि उसके पक्ष में और भी लोग मिल गये थे। रुपनाथजीने बहुत कुछ समझाया, परन्तु नहीं समझा, तब ' विगडा पान बिगाडे चोली, बिगडा साधु बिगाडे टोली' इस नियमानुसार रुपनाथजीने उसको सं० १८१५ चैत्र शुदि ९ शुक्रवार के दिन
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