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________________ ५८ यहांपर भगवान् महावीरदेवके अनुकंपा करनेसे-गोशालेको बचानेसे, तेरापंथी लोग भगवान्को 'चूका' कहते हैं, इसका हम विचार आगे चलकर करने वाले हैं, इस लिये यहाँ कुछ नहीं लिखते। सिर्फ यहाँपर यही कहेंगे कि, भगवान महावीरदेवने साधु अवस्थामें अनुकंपा करके, समस्त साधुओंको समय विशेषमें अनुकंपा करनेका सूचन किया । भगवान पार्श्वनाथ, और नेमनाथजीने गृहस्थावस्थामें अनुकंपा करके, समस्त गृहस्थोंको अनुकंपा करनेका रस्ता दिखलाया। इस प्रकार जब लोकोत्तर पुरुषोंने ही अनुकंपाका आदर किया है, तो फिर लोकिक पुरुषोंके करनेके लिये तो कहना ही क्या ? इस अनुकंपाके विषयमें, परमात्मा महावीरदेवने तो यहाँतक फरमान किया है कि-यदि जीवरक्षाके लिये साधुको अपवादमें मषावाद भी बोलना पडे, तो कोइ हर्जकी बात नहीं है। जैसे, आचारांगसूत्रके द्वितीयश्रुतस्कंधके, तीसरे अध्ययनके, तीसरे उद्देशेमें इस प्रकारका पाठ है: " से भिक्खू वा भिक्खुणी वा गामाणुगामं दूईज्जमाणे अंतरा से पाडिपहिया आगच्छेज्जा । तेणं पाडिपहिया एवं वदेज्जाः-आउसंतो समणा, अवियाई एत्तो पडिपहे पासह, तंजहा-मणुस्सं वा गोणं वा माहिसं वा पसुं वा पक्खिं वा सिरीसिवं वा जलचरं वा आइक्खह दंसेह ? तं णो आइक्खेजा, णो दंसेज्जा, णो तेसिं तं परिणं परिजाणेज्जा, तुसिणीओ उवेहेज्जा, जाणं वा णो जाणति वएज्जा । तओ संजयामेव गामाणुगामं दूइज्जेज्जा ।"- ( राजकोटमें छपा, पृष्ठ २७० ).
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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