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________________ .४५ मूर्तिपूजाका निषेध करनेवाले लोकेसेभी नहीं शुरु हुआ था । लोके मत निकालने के करीब दोसो वर्ष पश्चात् लजीने यह कुलिंगपना धारण किया । यह बात हम ही नहीं कहते, किन्तु ढूंढकसाध्वी पार्वती, अपनी बनाई हूइ 'ज्ञानदीपिका ' नामक पुस्तकके १३ वें पृष्ठ में भी लिखती है कि: ८८ - इस रीतीसे पूर्वक यति लोकोंकी क्रिया हीम हो रही थी, सोई पूर्वक यतियों की लवजी नाम यतिने क्रिया हीन देखकर अनुमान १७२० के सालमें अपने गुरुको कहने लगे कि तुम शास्त्रोंके अनुसार आचार क्यों नहीं पालते ? । तब गुरुजी बोले किपञ्चम कालमें शास्त्रोक्त संपूर्ण क्रिया नहीं हो सक्ती, तव लवजी बोले कि तुम भ्रष्टाचारी हो, मैं तुम्हारे पास नहीं रहूँगा । मैं तो शास्त्रों के अनुसार क्रिया करूंगा, जब उसने सुखवस्त्रका मुखपर लगाई और दो चार यतियोंको साथ लेके देश देश में फिरने लगे ।" 1 खैर, इतनी रामकहानीसे अपनेको कुछ ताहुक नहीं है । यहाँ देखनेका सिर्फ यही है कि मुहपत्ती बांधना सं० १७२० से शुरु हुआ है । लवजी ऋषिने किसीभी कारण से मुँह बांधना शुरु किया हो, परन्तु हमें तो यही कारण मालूम होता है कि- लवजीके मनमें विचार उत्पन्न हुआ हो कि - " हमारे बड़े लोगोंने परमात्मा की मूर्तिको उत्थापन करनेका महान् दुष्कृत्य किया है, तो अब हम लोगों को उचित है कि -संसारमें किसीको मूँह न दिखावें । क्योंकि संसारमें जो महान् दुष्कृत्य करता है, वह लज्जित होकर किसीको मुँह नहीं दिखाता। "
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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