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________________ धर्मको नहीं मानते हैं। हमारे ही शास्त्रों में नहीं, समस्त धर्मके शास्त्रोंमें यह प्रतिपादित किया गया है कि-शरीरमें किसी जगह भी अशूचिपदार्थ लग जाय, तो उसको साफ करके ही कोईभी कार्य करो। लेकिन तेरापंथियोंको इस नियमसे कुछ भी ताल्लुक नहीं है। उनकी साध्विएं-श्राविकाएं रजस्वला धर्ममें आनेपर भी पढना-लिखना और घरका सब कार्य करेंगी। बतलाईये, बुद्धिके निर्मल रहनेका है एकभी कारण ? । जब रजस्वला धर्म तकको नहीं मानते हैं, तो फिर थूकसे भरी हुई मुहपत्ती मूंहपर बांधे रक्खें, तो इसमें आश्चर्यकी बातही क्या है ?। तेरापंथी, एक इस युक्तिको भी पेश करते हैं कि-" खुले मूंहसे बोलनेसे वायुकायके जीवोंकी हिंसा होती है।" लेकिन यह उन लोगोंकी भूल है । अव्वल तो तेरापंथी इस बातको समझही नहीं सके हैं कि-' खुले मूंहसे क्यों नहीं बोलना चाहिये ?।' खुले मूंहसे नहीं बोलनेका खास कारण तो यही है कि'संपातिम जीवोंकी रक्षा हो, वायुकायकी रक्षा के लिये नहीं । क्योंकि-भाषावर्गणाके पुद्गल चारस्पर्शी होनेसे, आठ स्पर्शी वायुकायके जीव नहीं हणे जाते हैं । तिसपर भी अगर यह मानलें कि'भाषावर्गणाके पुद्गलोंके पीछे निकलती हुई हवासे वायुकायके जीव हणे जाते हैं, ' तो भी यह तो कभी होही नहीं सकता किमूंहपर मुहपत्ती बांधनेसे उनका बचाव हो । मूंहकी हवा तो किसी न किसी द्वारा निकलेगी ही। चाहे नाक द्वारा निकले, चाहे मुंहद्वारा । यदि मूहकी हवा बाहर न निकलने पावे, और अन्दरकी अन्दर रूंधी जाय, तो मनुष्य बचे ही नहीं। लेकिन यह तो तेरापंथियोंसे भी नहीं होता, तो फिर मुहपत्ती बांधकर वायुकायके
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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