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________________ नहीं रखते । अर्थात् बिलकुल छोटे, यानि दश वर्षके अन्दर २ के प्रायः हैं । अब बतावें, तेरापंथी के पूज्य कालुरामने, कैसी शिक्षा देकर उन बिचारे बालकों को दीक्षा दी ! | बतलाईये, तुम्हारे मतोलक - तुम्हारे माने हुए तीर्थंकर भीखमजीकी आज्ञाका खून हुआ, या कि नहीं ? | आगे चलकर भीखुचरित्रकी दसवीं और ग्यारहवीं ढालमें यहाँ तक गप्पमार दी है कि भीखमजी जब यमराज के अतिथि होने के समयपर आए, अर्थात् मरने लगे, उस समय उनको 'अवधिज्ञान' हुआ था । जरासा भी है भक्का डर यदि होता तो, ऐसी बेसिकी बात लिखता ही क्यों ? । हम पूछते हैं कि क्या इस वर्तमानकालतें किसी धुरंधर आचार्यको भी अवधिज्ञान हुआ है ? | नहीं | तब फिर इस महा अधर्मका प्रचार करनेवाले भीखमको कैसे अवविज्ञान होगया ? । और अवधिज्ञान हुआ, इसमें प्रमाण ही क्या है ? और प्रथम तो उसमें शास्त्रोक्त चारित्र ही नहीं था, तो फिर अवधिज्ञानकी संभावना ही क्या हो सकती है ? | ऐसी गप्पें ठोकनेसे क्या तेरापंथियोंकी खिचडी पक सकती है ? | कभी नहीं | फिर ग्यारहवीं ढालमें लिखा है: --- 4 प्रथमपद परमेसरूरे त्यांरा कल्याणक पांच प्रकार । इणविध कल्याणक त्यांरा हुआरे, इग दुसमकालमोजार ' ॥१०॥ 1 अधर्मकी हद आ चुकी । और क्या कहा जाय ? | कल्याणक किसके होते हैं ? जिसके कल्याणक होते हैं, उसको गर्भमें से ही कौन कौन ज्ञान होते हैं, जन्मसे कौन २ अतिशय होते हैं, ये सारी बातें पहिले कह दी गई हैं, इससे पाठक समझ गये होंगे कि-कहाँ मोक्षमें जाने वाले अर्हन् तीर्थकर, और कहाँ दया दान•
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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