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________________ नहीं, फिर चरम कल्याणक कैसा ? खैर, तेरापंथी लोग, भीखमजीका 'मोक्ष' न मानकर पांचवाँ देवलोक मानते है, यह भी सरासर झूठ है, क्योंकि छेत्र?संघयणवालेकी, चतुर्थदेवलोकके ऊपर. गति ही नहीं है, इस प्रकार जैनशास्त्र फरमाता है । तो फिर भीखमजीका पांचवाँ देवलोक हुआ, ऐसा भी क्योंकर माना जाय ?। - अफसोसकी बात है कि-लेखकको, तीर्थकरोंके कल्याणकोंकी तरह भीखमके कल्याणक लिखते हुए जरासा भी भवका डर नहीं हुआ, उसके विषयमें हम लिखें ही क्या ?। भीखमजीका जब अन्तसमय नजदीक आया, तब उसने अपने चेले चापटोंको उपदेश दिया है कि:"जिणतीणनेरे जिणतिणने मत मुंडजोरे,दीक्षा देजो देख देखरे॥११॥ ___ उपदेश तो बहुत ही अच्छा, पर इसके अनुकूल बर्ताव कौन करता है ? । लेकिन इसमें एक बात तो यह है, खुद उपदेशक ही कूएमें गिरा हुआ हो, तो फिर चेले क्या कर सकते हैं ? । जिसकी मूल उत्पत्ति ही संमूच्छिमपनेसे हुई है, उसकी परंपराका फिर क्या ठिकाना रह सकता है ? । और उस संमूच्छिम मतके साधु भी, परीक्षा करके कैसे मूंडे ?। तब कहना होगा कि-भीखमजीका यह उपदेश वचन मात्र हीमें था। और हुआ भी वैसा ही। आज कल भी हम देखते हैं कि, 'जो आया सो मूंडा' ऐसा हाल हो रहा है। अभी कालूराम नामक, तेरापंथके पूज्यके पासमें दो . दो छोटे छोटे ऐसे बालक मूंडे हुए देखे जाते हैं, कि जो बिचारे साधुपना किस' चीड़ीयाका नाम है ? यह भी समझने की शक्ति
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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