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________________ " अवतिजीवन नहीं चाहना' यह सूत्रोंमें आया है, नहीं समझ कर अर्थ इसीका, इसको यों पलटाया है" अवति जीवोंका जीना नहि चाहो, यह बतलाया है" ऐसे तेरापंय मजबने, जगमें ढोंग मचाया है। (४४) ऐसा झूठा अर्थ समझकर, दया हृदयसे खो डाली, दान-पुण्य शुभकरणी अपने ही हाथोंसे धो डाली । समकितको खो बैठ हृदयसे, जो मिथ्यात्व बसाया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है । . ४५ पार्श्वनाथने सांप बचाया, शान्तिनाथने कबुतरको, नेमनाथने पशु बचवाये, देखो उन अधिकारोंको । नहीं व्रतीथे, फिर भी उनका, क्यों रक्षण करवाया है ? ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है। शास्त्रोंमें तो यही बताया. श्रावक यह कहलाता है:____“सात क्षेत्रमें भक्ति-प्रेमसे धनका व्यय जो करता है। दीन दुखीमें धनका व्यय भी जिसने नित्य कराया है, " ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है । ४७ Q फिर भी इसको नहीं मानकर, दान-पुण्य भगवाया है, (११)
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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