SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 167
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ano.ko.0000000000000000.00 ___ "नहीं किया क्यों प्रयतन प्रभुने, जीवोंके परिपालनका"?। भाविभावको जानें जिससे, नहीं प्रयत्न कराया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमे ढोंग मचाया है ।। (३५) * “चुलणिपियाके सीन पुत्रको मारे पौषधशालामें, पर, नहि की अनुकंपा उनपर, रहा धर्मकी दृढ़तामें"। * प्रसंग था वह मोहरायका, उसको और बताया है, () ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है । (३६) माताके आनेपर इसने, कोलाहलको बहुत किया, रजनीका था समय, अतः व्रतभंग इसे तो कही दिया। सूत्र उपासकमें यह आया, दया-निषेध न आया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढोंग मचाया है। (३७) " मच्छ गलागल नितपति होती, सारे द्वीप समुद्रोंमें, इनको क्यों न बचावें प्रभुजी, रहे इन्द्र जब आज्ञामें ?" भाविभावको जानें जिनवर, जैसा होनेवाला है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें ढेंग मचाया है। (३८) कइ अनुकंपा 'जिनआज्ञामें' कइको 'आज्ञाभिन्न ' गिनें, नहीं भेद दिखलाए कहिंपर, फिरभी अपने आप गिर्ने । १ पृ० १४० । ...............orrorror
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy