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________________ ÎNCHICHCHCH ̄** ̄*¿ ̄...O...O...... ̄÷go.........d ♦♦09660 **O १७ करूँ कहाँ तक वर्णन इसका ? बहुत विषय कहनेका है, दया - वृक्षको तोड दिया, बी बोया निर्दयताका है । आर्द्रभावको दूर किया, निज मन पाषाण बनाया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें गजब मचाया है ॥ १८ 6 दया दयाका नाम पुकारें, दया नहीं जानें लवलेश, दुःखीको दुखसे छोडाना, ' कही दया यह ही परमेश । इसी दयाको, पर, नहीं जानें, मानें मन जो आया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें गजब मचाया है ॥ १९. “ जीव मारनेसे लगता है, पाप एक, मारे उसको, पाप अठारों लगे उसीको, मरतेको परिपाले जो । " यह सिद्धान्त खास है इसका, इसमें सब कुछ आया है, ऐसे तेरापंथ जबने, जगमें गजब मचाया है ॥ २० “जो कुछ देना सो हमको दो, मत दो और किसीको कुछ, नहीं पात्र हैं और जगत् में, हमहीको समझो सब कुछ ।” साध्वाभासोंकी यह शिक्षा, नवीन पंथ चलाया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें गजब मचाया है ॥ २१ अब कुछ सुनो सूत्रकी बातें, जो इसने पलटाई हैं. नहीं समझकर अर्थ इन्हींके, कुयुक्तियाँ दिखलाई हैं । **C***C***O*** ̄*6606. ( ५ ) CoooC ********* ̄***0*** 066066¢0660660666066000660oo.
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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