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________________ *** ̄*** ̄*** ̄***$*0*60** ̄**C*** ̄***0*** C*6*0**$ C ******C***C***>< 66 66 " “ सबल जीव दुर्बलको मारे, धर्म छुडाये मत मानो । " लाय बुझाओ - कसाइ मारो, दोनों सम समझाया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें गजब मचाया है ॥ १३ “ विद्याशाला- दानभवन- हॉस्पिटल और पानीकी पो, ऐसे कार्योंके करनेसे, धर्म-पंथको बैठे खो । " यही बोध है इसी पंथका, क्या ही तत्त्व निकाला है ?, ऐसे तेरापंथ जवने, जगमें गजब मचाया है ॥ १४ " जीवोंका जीना नहि चाहें " ऐसी डींग अडाते हैं, फिर भी मक्खी गिरे दालमें, तुरत निकाल बचाते हैं । वायुकायके जीव बचानेको पाटा बंधाया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें गजब मंचाया है ।। १५ " जीवोंका हम तरना चाहें " इसी भूतके कारणसे, मरतेको सुखसे वे देखें, क्या है ऐसे तारणसे ? | आया इसका यही नतीजा, दया- दान उठवाया है, ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें गजब मचाया है || १६ यह तरना वे भी तो चाहें: - कसाइ नाम धराते हैं, ईश्वरका ले नाम, पशुव्रजका जो जभे कराते हैं । रहा फरक क्या इन दोनोंमें ? नहीं समझमें आया ऐसे तेरापंथ मजबने, जगमें गजब मचाया है ॥ है, **066600*606 ( ४ ) *** ̄*** ̄*** ̄*** ̄** ̄** ̄** ̄*•O•••—••• ̄*** ̄******
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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