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________________ १२८ तो संसारमें साधुके हृदयमें दयाका नाम तक रहने न पावे । इस लिये विचार करनेसे मालूम होगा कि-तेरापंथियोंके दिये हुए उपर्युक्त सातों प्रसंगोंमें समानता हर्गिज नहीं हैं। उनमें कई प्रसंग, साधुको मौन रहने लायक हैं, और कई बचाने लायक । क्योंकि जहाँ जैसा अधिकार-जैसा लाभ है, वहाँ वैसी ही प्रवृत्ति करनी चाहिये । ___ संक्षेपसे कहनेका तात्पर्य इतना ही है कि-भिखमजीने, उपर्युक्त सात प्रसंग विना समझे ही दिये हैं । इसी प्रकार पांचवीं ढालमें सौ सौ मनुष्योंको, अन्न खिला कर, पानी पिला कर, हुक्का पिला कर, वगैरह एकेन्द्रिय जीवोंकी हिंसा पूर्वक बचानेके सात दृष्टान्त दिये हैं। लेकिन, वे भी, भीखमकी अज्ञानताको ही जाहिर करते है कि उसमें यह ज्ञान था ही नहीं कि- एकेन्द्रिय जीवोंकी हिंसा होते हुए भी पंचेन्द्रियके बचानेमें कितना लाभ होता है ? । ___ इन सात दृष्टान्तोंमें तो भीखमजीने एक और भी रीतिसे, अपने पांडित्य (!) का परिचय कराया है। वह यह है किबहुतसे दृष्टान्त तो असंभवित ही दिये हैं । देखिये, क्या यह कभी हो सकता है कि-सौ मनुष्य मुले-गाजर खाकरके ही बचें, और किसी उपायसे न बचे ?। क्या यह कभी माना जा सकता है किसौ बीमार मनुष्य हुक्केके पीनेसे ही बचे, और किसी उपायसे न बचें ?। और, क्या कभी किसीने सुना भी है कि-मरते हुए सौ मनुष्योंकों बचानेके लिये किसी एक मनुष्यके मस्तकमेंसे ममाई निकाली जाय ? । लेकिन बहादुरी हैं भीखमजीकी, कि जिन्होंने भोले जीवोंको फँसानेके लिये ऐसे असंभवित भी दृष्टान्त दे दिये हैं। ( ममाई मनुष्यके मस्तकमेंसे बनाई जाती है, यह भी वात झूठी है । ममाई, किसी अन्य पदार्थ से बनाई जाती है, ऐसा वैद्योंका अभिप्राय है।) .
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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