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________________ १२० दया के साठ नाम दिखलाए हैं, उनमें भी ५४ वाँ नाम अमाघाओ है। जिसका अर्थ होता है अनाघात यानि अमारीपटह । अब बतलाइये, इसको अधर्म कैसे कहा जा सकता है । भीखमजीकी बुद्धिका एक और नमूना भी देख लीजिये। भीखमजी कहते हैं कि-" दो स्त्रियाँ कसाईके वहाँ चली गई । एकने अपने पासके आभूषणोंको दे करके एक हजार जीव छोडाये, और एक स्त्रीने कसाईसे विषय भोग करके हजार जीव छोडन्ये । अब इन दोनोंमें किसीको धर्म नहीं हुआ । क्योंकि-एकने पाँचवा आश्रव सेवन किया और दूसरीने चौथा । फिर दोनों से किसीको भी क्यों धर्म होवे ?।" इससे तो यही मालूम हुआ कि-आश्रव किसका नाम है, यह भी भीषम नहीं जानता था । अच्छा, इस आश्रवके तत्त्वको हम समझावें, उसके पहिले, भीषमजीके, उपर्युक्त दृष्टान्तके प्रत्युत्तरमें एक और दृष्टान्तको सुनलीजिये। ___ आपकी दो श्राविकाएं, आपके पूज्यजीको बंदणा करनेके लिये जा रही थीं। रस्तेमें चोर मिल गये। एक श्राविकाने अपने पासके आभूषणों को दे करके अपनी जान बचाई, और एकने विषय सेवन करके अपनी आत्मा बचाई । अब बतलाइये, आपके गुरुजी प्रायश्चित्त किसको देंगे ? । तुम्हारे हिसाबसे तो दोनोंको देना चाहिये, क्योंकि-एकने पांचवाँ आश्रव सेवन किया है, और एकने चोथा । लेकिन नहीं, जिसने अपने आभूषणोंको देदिये हैं, उसने आश्रवको नहीं सेवन किया, बल्कि, उन आभूषणों परसे मर्छाको उतार दिया है। फिर उसको पांचवाँ आश्रव कैसे कहा जाय ? । __ हम तेरापंथियोंसे पूछते हैं कि--पांचवा आश्रव कहते किसे हो ? देखो पांचवें आश्रवका नाम है परिग्रह । अब, यह सोचना चाहिये
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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