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________________ है कि-किसी भी कार्यके करनेमें मनुष्यके परिणाम खास करके देखे जाते हैं । और इसीका यह परिणाम है कि-इस पोथी ढालमें अनेक प्रकारके कुतर्क करके वास्तविक बातको छिपाई है । देखिये । भीखुनजी कहते हैं: - "कीडीमांकादिक लटा गजायां, ढांढारा पग हेठे चीथ्या जावे। भेषधारी कहै में जीवबचावां, तो चुणचुग जीवांने कायनै - उठावे" ॥९॥ यह कहा किसने कि-' जिससय कोई पशु जा रहा हो, और उसके नीचे अगर कोई जीव आ जाता हो, और दृष्टिमें अगर आ जाय, तो उसको न उठावे ? । जरूर उठाकर अलग रक्खे । अगर वहाँपर कोई गृहस्थ न होवे, तो साधु स्वयं उठाकर अलग रक्खे, तो उसमें कोई हर्जकी बात नहीं है। और यह कहना भी बिलकुल भूल है कि-' साधु को, वैसे ही दिनभर जीवोंको उठाते फिरना चाहिये ।' क्योंकि अच्छे कार्य भी समयपर ही किये जाते हैं । हम तेरापंथी साधुओंसे पूछते हैं कि- आप लोग, जीवको बचानेमें पाप समझते हैं, परन्तु सामायिक करानेमें तो धर्म समझते हो। अच्छा, इसमें अगर धर्म समझते ही हो, तो फिर दिन भर लोगोंके मकानोंमें घूमघूम करके लोगोंको सामायिक क्यों नहीं करवाते ? । क्योंकि-स्थानमें बैठकरके तो तुम्हारे उपदेशसे जितने आदमी सामायिक करेंगे । उससे घरघर घूमकर सामायिक कराते फिरोगे, तो बहुत आदमी करेंगे । तो फिर ऐसा क्यों नहीं करते ?। लेकिन, नहीं, ऐसा नहीं हो सकता। इसी तरहसे हम भी जीवको बचानेके लिये उसी समय प्रयत्न करते हैं, जब कि, हमारे सामने ऐसा
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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