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________________ है, वह अनुचित है। लेकिन ऐसा तो कहा ही नहीं । बल्कि इस कार्यको तो प्रशंसा रूपमें कहा है। फिर इसको आज्ञा बाहर कैसे कह सकते हैं । स्थूलघुद्धिसे विचार किया जाय, तो भी यह मालूम हो सकता है कि-संसारमें परोपकार करना, यह तो परमधर्म माना गया है । और इसी प्रकार बडे लोग, दुःखीमनुष्योंके ऊपर परोपकार करते ही आए हैं । और परोपकार तब ही होता है, जब दुःखीको देख करके अन्तःकरणमें दया आती है । फिर इसको आज्ञा बाहर कहना, कितनी अज्ञानताका कारण है ? । इस प्रकार और भी बहुतसी बातें निर्दयताकी इस तीसरी ढालमें लिखी है। जैसे कि-' कोई जीव मरता हो, तो उसको उठाकर छायामें नहीं रखना चाहिये ।। ' कोई मनुष्य जंगलमें भूला पड़ गया हो, उजाडमें जा रहा हो, और बहुत दुःखी हो रहा हो, तो उसको सीधा रस्ता नहीं दिखाना चाहिये । उसको वहाँ ही अनशन कराकरके स्वर्गमें पहुँचा देना चाहिये । ' इत्यादि। लेकिन इन बातोंका जवाब लिख, पिष्टपेषण करना अच्छा नहीं समझते । अच्छा, अब चतुर्थ ढालको देखिये। चोथी ढालमें, तेरापंथ मत के उत्पादक भीख मजीने, अपनी मानी हुई दयाका उल्लेख कर, ऐसी कुयुक्तियोंसे लोगोंको भ्रमित करनेकी चेष्टा की है, कि जिसको पढकर सचमुच भीखुनजी और उसके अनुयायियोंपर भावदया ही आती है । इस चतुर्थ ढालको पढकरके, हम यह तो अवश्य कह सकते हैं कि- भीषमजीने, अपने मतके प्रचार करनेके कारण, इस बातपर तो बिलकुल ख्याल ही नहीं किया
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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