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________________ C ९९ ' 9 मेघकुमारने, हाथीके भवमें, ससले की भावी दु:खसे रक्षा की, इस अनुपाको जिनाज्ञा में कहते हैं। नेमनाथ भगवान्ने, अपने विवाहके समय मारनेके लिये इकट्ठे किये हुए पशुओं की भावीदुःखसे रक्षा की इसको भी जिनाज्ञा में कहते हैं। धर्मरुचिअनगार, जीवोंकी विराधना होगी इस अभिप्रायसे, कटुटुंबेके शाकको स्वयं खा गये, इसको भी आज्ञा में कहते हैं । और भगवान् का गोशालेको बचाना; हरिणैगमेषीदेवका, सुलपाके वहां छद्दों पुत्रोंका छोडना : मेघकुमारके गर्भ में आनेपर, धारिगीरानी का, अनुकंपा से इच्छित अशनादिकका खाना, हरिकेशीकी रक्षाके कारण यक्षदेवताका, ब्राह्मगोंको उल्टेकर देना; वृद्ध पुरुषपर दया लाकर कृष्णजीका, उसकी ईंटें घरपर लाना, इत्यादिको जिनाज्ञा बाहर कहते हैं । लेकिन, यह सोचनेकी बात है कि अमुक अनुकंपा आज्ञा बाहर है, ऐसा, जब तक कोई प्रमाण न मिले, तब तक कैसे माना जा सकता है ? | क्या अन्तःकरणके दयाई परिणाम, आज्ञा बाहर हो सकते हैं ? | कभी नहीं । चाहे, जीवों के भारी दुःखों के लिये दवाई परिणाम हुए हों, चाहे, जीवों के वर्तमान दु.खों के लिये हुए हों । परन्तु दयावाला परिणाम होना, यह तो एकान भकर्ता ही है । मेघकुमारने, अपने पैर के नीचे आए हुए सलेपर पैर न रख करके उसकी रक्षा की | नेमनाथ भगवान्ने, अपने विवाह के समय, मारनेके लिये लाए हुए जे.व.की, रक्षा की । और धर्मरु. चे अनगारने, कटुटुंब के शाकको खा करके, मरनेवाले जीवोंकी रक्षा की । इसी प्रकारसे जिस अनुकंपाको, तेरापंथ जिनाशा बाहर कहते हैं, उसमें भी जीवोंकी रक्षा और उचित भक्तिका ही कारण हैं, और कोई नहीं । देखिये उन प्रसंगोंकों
SR No.007294
Book TitleTerapanthi Hitshiksha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVidyavijay
PublisherAbhaychand Bhagwan Gandhi
Publication Year1915
Total Pages184
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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