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शंकाओं का समाधान
उपकेशवंश ( सवालों ) की उत्पत्ति समय के विषय में जो शङ्काएँ हमारे सामने पेश होती हैं उनका समाधान करने के पूर्व दो बातों का उल्लेख करना हम परमावश्यक समझते हैं । उनमें पहिली तो यह कि महाराजा उत्पलदेव को परमार जाति का कहना, दूसरी उपकेशवंश का नाम वर्त्तमान सवालों से संगत करना । बस यही दो बातें हमारे कार्य में रोड़ा डाल रही हैं अर्थात् भ्रम पैदा करती हैं अतः इनका समाधान करना अत्यावश्यक है ।
उपकेशपुर नगर बसानेवाले उत्पलदेव को कई एक इतिहासाऽनभिज्ञ परमार कहते हैं, वस्तुत: परमार नहीं थे क्योंकि केवल भाट भोजकों की दन्तकथाओं के — किसी प्राचीन ग्रन्थ या पट्टावलियों में उत्पलदेव राजा को परमार नहीं लिखा है प्रथम तो उस समय में परमारों का अस्तित्व भी नहीं था कारण उत्पलदेव का समय तो विक्रम से ४०० चार सौ वर्ष पूर्व का है और परमारों के आदि पुरुष धूम्रराज परमार - बाद उत्पलदेव हुआ जिसका समय विक्रम की दशवीं शताब्दी है तो फिर समझ में नहीं आता कि भिन्नमाल का उत्पलदेव को परमार जाति का कैसे बतलाया जाता है ।
उपके गच्छ पट्टावली में लिखा है:
"श्री लक्ष्मी महास्थानं तस्याभिधानं पूर्वं ( नाम ) कृतयुगे रत्नमालं त्रेतायुगे पुष्पमालं द्वापरे श्रीमालं कलियुगे भिन्नमालं तत्र श्री राजा भीमसेन स्तत्पुत्रश्री पुजस्तत्पुत्र उत्पलदेवकुमार अपर नाम श्रीकुमारस्तस्य बान्धवः श्री सुरसुन्दरो युव राजो राज्यभारे धुरन्धरः" ।
इस उल्लेख से स्पष्ट होजाता है भिन्नमाल के राजवंश के साथ परमार वंश का कोई सम्बन्ध नहीं है, अब हमें यह देखना है कि भिन्नमाल के राजा किस वंश के थे और भिन्नमाल कितना प्राचीन स्थल है ।
श्रीमाल पुराण से लिखा है:
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श्रीमालेऽहं निवत्स्यामि, श्रीमालं दयितं मम ॥ श्रीमाले ये निवत्स्यन्ति ते भविष्यन्ति मे प्रियाः ॥
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