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________________ ४६ श्रोसवालों की उत्पत्ति मैशाशाह का परिचय देते हुए मुंशीजी ने लिखा है कि भैशाशाह के और रोड़ा विणजारा के साथ में व्यापार सम्बन्ध ही नहीं पर आपस में इतना प्रेम भी था कि दोनों का प्रेम चिरकाल तक स्मरणीय रहे इस लिहाज से भैशा-रोड़ा इन दोनों के नाम पर "भैशरोड़ा" नाम का एक ग्राम वसाया वह आज भी मेवाड़ प्रान्त में मौजूद है। जैन समाज मे भैशाशाह ? बड़ा भारी प्रख्यात है। वह उपकेश जाति आदित्यनाग गोत्र का महाजन था। जब वि० सं० ५०८ पहिले भी उपकेश जाति ने व्यापार में अच्छी उन्नति करली थी तो वह जाति कितनी प्राचीन होनी चाहिए, इसके लिये पाठक स्वयं विचार करें ।* १२-खेतहूणों के विषय में इतिहासकारों का यह मत है कि स्वतहूण तोरमोण, पंजाब से विक्रम की छट्ठी शताब्दी में मरुस्थल की ओर आया, भोर मारवाड़ के ऐतिहासिक स्थान भिन्नमाल को अपने हस्तगत कर अपनी राजधानी बनाया। जैनाचार्य हरिगुप्तसूरि ने उस तोरमाण को धर्मोपदेश दे जैन धर्म का अनुरागी बनाया, जिसके फल स्वरूप तोरमाण ने भिन्नमाल में भगवान ऋषभदेव का विशाल मन्दिर बनाया, बाद तोरमाण के उसका पुत्र मिहिरगुल कट्टर शिवधर्मोपासक हुआ, उसके हाथ में राजतंत्र आते ही जैनों के दिन बदल गए। जैन मन्दिर बलात् तोड़े जाने लगे और जैनों पर इतना अत्याचार होने लगा कि जैनों को सिवाय उस समय देश-त्याग के अपनी मुक्ति का और कोई साधन नहीं सूझा । मजबूर हो वे मारवाड़ छोड़ लाट (गुजरात) देश की तरफ चल पड़े। उपकेश जाति व्यापारिक-वर्ग में तो आदि से ही अग्रसर थी अतः वहाँ का व्यापार अपने अधीन किया। आज जो लाट (गुजरात) देश में जो उपकेश जाति निवास करती है वह विक्रम की छट्ठी शताब्दी में मारवाड़ से गई हुई है, और वहाँ जो इस जाति के लोगों ने मन्दिर मूर्तियों की प्रतिष्ठा कराई, जिनके शिलालेखों में नोट:-(१) उपकेश जाति में भैशाशाह नाम के तीन पुरुष हुए हैं। १ एक तो प्रस्तुत शिलालेख वाला छठी शताब्दी में। २ डीडवाना और भीनमाल निवासी भैशाशाह जो विक्रम की बारहवीं शताब्दी में और ३ नागोर में ऋषभदेव की मन्दिर-मूर्ति का निर्माण कराने वाला विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में
SR No.007293
Book TitleOswal Ki Utpatti Vishayak Shankao Ka Samadhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpmala
Publication Year1936
Total Pages56
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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