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नासिक जिला ।
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वन जिसमें गुफाएं हैं व रामचंद्रजीका मंदिर है । (३) पश्चिमकी तरफ ६ मील गोवर्द्धन या गङ्गापुरकी प्राचीन वस्ती जहां बहुत सुन्दर पानीका झरना है । (४) जैन चंभार लेन गुफाएं (यही श्री गजपंथजी तीर्थ है) (५) पांडु लेना या बौद्धों की गुफाएं ये एक पहाड़ीमें हैं । बम्बईकी सड़कके निकट । इनको शिलालेखों में त्रिरक्ष कहा गया है । ये बौद्ध गुफाएं सन् ई० २५० वर्ष पूर्वसे ६०० 1 ई० तककी हैं । इनमें बहुत से शिलालेख अन्ध्रों, क्षत्रपों व दूसरे वंशों के हैं । पश्चिमी भारतमें ये लेख मुख्य हैं व इनसे प्राचीन इतिहासका पता चलता है । इन्हीं पांडु लेना गुफाओंमें नं० ११ की जो गुफा है उसमें नीलवर्णकी श्री रिषभदेवकी जैन मूर्ति बिराजित है । पद्मासन २ फुट ३ इन्च ऊंची है। मालूम होता है ११ वीं शताब्दी में दि० जैनोंका यहां प्रभुत्व या । ( नासिक गनेटियर नं ० सोलह सफा १८१) (नोट- भा० दि० जैन तीर्थक्षेत्र कमेटी बम्बईको इस गुफाकी रक्षा करनी चाहिये ) |
इसी गजटियरके सफा ५३५ में है कि ११ वीं व १२ वीं शताब्दीमें नासिक जैनधर्म के महत्वसे व्याप्त था । इस नासिकका प्राचीन नाम पद्मनगर और जनस्थान या । यही वह स्थान है जहां सुवर्णनखा खरदूषणकी स्त्रीका मिलाप श्री रामचंद्रजीसे हुआ था । प्राचीन कालमें यहां श्री चन्द्रप्रभु भगवानका जैन मंदिर था जिसको अव कुन्तीविहार कहते हैं ।
(६) चंभार लेना या श्री गजपंथा तीर्थ-नासिकनगरसे ५ या ६ मील एक पहाड़ी है जो ६०० फुट ऊंची है ऊपर जाने को १७६ सीढ़िया बनी हैं। यहां प्राचीन जैन गुफाएं हैं अब भी