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अहमदाबाद जिला। व भूषणोंको स्वीकार करें जो सबसे बढ़िया थे व जिनका इन आक्रमणकर्ताओंको ज्ञान न था । इसका फल यह है कि मकानोंमें जैन या चालुक्यकलाकी सुन्दरता समागई। उसमें कुछ अधिकता की गई जिसको हिन्दू कभी नहीं पासके थे, परन्तु जो उन लोगोंके व्यवहारमें थी जो इस समय सर्व भारतको अपने अधिकारमें कर रहे थे ।" नोट-इससे जैनियोंके महत्त्वका अच्छा ज्ञान होता है ।
इस नगरके बाहर रखियाल ग्राममें मलिक शाबानकी बड़ी कब है उसमें जो खभे व नक्कासी किये हुए पत्थर भीतर चबूतरोंके बनानेमें लगे हैं वे सब कुछ जैन व कुछ हिन्दू मंदिरोंसे लिये हुए मालूम होते हैं ( A. S. of India W. for. 1921 ) दिहली और दर्यापुर दरवाजोंके बीचमें फूटी मसजिद है। यह एक बड़ी पत्थरकी मसजिद है जिसमें ५ गुम्बज हैं । सामने खुली है इसमें २२ खंभे हैं । इनमेंसे कुछ जैन कुछ हिन्दू मंदिरोंके हैं । इस नगरमें दर्शनीय जैन मंदिर हाथीसिंह का है (बना सन १८४८) व चिंतामणिका जैन मंदिर है जो नगरसे पूर्व १॥ मील सरसपुरमें है । इसको शांतिदासने नौ लाख रुपयेसे सन् १६३८ में बनाया था । इसको बादशाह औरङ्गजेबने नष्ट किया । अब भुला दिया गया है । ( A. S. of India Vol XVI Cousins ) इसी शांतिदासजीके मंदिरके सम्बंधमें जो 'रेलवे स्टेशनसे बाहर है' अहमदावाद गजेटियर ( जिल्द ४ छपा १८७९ ) में है कि यह ऐतिहासिक वस्तु है । यह नगरमें सबसे सुन्दर रचनाओंमें एक थी। यह मंदिर एक बड़े हातेके मध्यमें था । हातेके चारों तरफ एक पत्थरकी ऊंची दीवाल थी जिसमें सब तरफ छोटे २ मंदिर थे।