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मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक ।
गुजरात शाखा में ७५० से ९८० तक गूजर और राष्ट्रकूटोंने साहित्त्यकी बहुत उन्नति की तथा खासकर जैनियोंको बहुत महत्त्व दिया । इनमें राजा अमोघवर्ष प्रथम (८१४ - ८७७) जैन साहित्य का खास संरक्षक हुआ है। इसकी उदारताने अरबोंके दिलोंमें बड़ा असर किया था वे इसे वल्लभराज कहते थे । राष्ट्रकूटकी दूसरी शाखा दक्षिणमें ( ८०० से १००८ तक ) राज्य करती थी । सन् ७७५ में पारसी लोग फारसकी खाड़ीसे व्यापारको आए । इन राजाओंने जो 'जैनधर्म, शैव, विष्णु तीनों धर्मोपर माध्यस्थभाव रखते थे ' इनका बहुत आदर किया । सन् ९७३ में दक्षिण में बलवा हुआ तब प्राचीन चालुक्य वंशीय तैलने राष्ट्रकूटोंको दवाकर नया चालुक्य राज्य स्थापित किया व राज्यधानी ( दक्षिण में ) कल्याणी में रक्खी। इसके पीछे वैरप्याने अपना राज्य दक्षिण गुजरात में जमाया, परन्तु दूर दक्षिणमें शिलाहार लोग समुद्रतटतक राज्य करते रहे ।
दक्षिण में ९७३ से १११६ तक कल्याणीके चालुक्योंने राज्य किया । इन्होंने कांचीके चोलोंसे युद्ध किया तथा मालवा के परमारोंको व त्रिपुरा (जबलपुर) के कलचूरियोंको विजय किया । हलेविका होयसाल वंश मैसूरमें राज्य करता रहा ( ११२० ) व सिंधाणुके नीचे यादव दक्षिणके राज्य रहे (१२१२) ।
बम्ब र वर्तमान बम्बई में सात भिन्न २ टापू गर्भित हैं । जो राजा अशोक के समय में गंत या उत्तर कोंकणका एक विभाग था । पीछे दूसरी शताब्दीमें यहां शतबाद्दन लोग राज्य