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________________ २०८ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । जैन मंत्रियोंको मान्य न थीं इस लिये वाद होते होते ब्राह्मणोंकी सभाओंके समान हुछड़ मच गया तब सिद्धराजने शांति कराई । श्वे ० लेखक कहते हैं कि देवसूरिने विजय प्राप्त की । देवसूरी हेमचंद्रका गुरु था । सिद्धराजके कोई पुत्र न था । भीमदेव प्रथमका पड़पोता त्रिभुवनपाल सिद्धराजके नीचे दहिलथी में अधिकारी था । उसकी स्त्री काश्मीरदेवी थी जिससे तीन पुत्र महीपाल, कीर्तिपाल और कुमारपाल और दो कन्याएं प्रेमलदेवी और देवलदेवी हुए । ज्योतिषशास्त्र से जानकर कि कुमारपाल राजा होगा सिद्धराज उससे असंतुष्ट हो गया। तब कुमारपाल भाग गया। एक मित्र के साथ कुमारपाल खंभात गया वहां हेमचंद्राचार्य से मिलाहेमने कहा कि तू अवश्य राजा होगा । कुमारपालने आचार्यकी शिक्षा के अनुसार चलना स्वीकार किया । यहांसे कुमारपाल वटपद्रपुर (बड़ौधा) आया और एक बनियेसे मिला जिसका नाम कतक था, कहते हैं इसने भुने हुए चने खिलाकर कुमारपालका सन्मान किया । यहां से वह भृगुकच्छ या भरोंच गया फिर उज्जैन जाकर अपने कुटुम्बसे मिला, वहांसे वह कोल्हापुर भाग गया । वहांसे कांची या कंजीवरम् गया। वहांसे कालम्बपाटन गया | वहां के राजा प्रतापसिंहने उसे बड़े भाई के समान रक्खा और उसके सन्मान में एक मंदिर बनवाया । नाम रक्खा " शिवानंद कुमालपालेश्वर " तथा सिक्केमें कुमारपालका नाम खुदवाया । यहांसे वह चित्रकूट ( चित्तौर) आया फिर उज्जैन आया। यहांसे वह अपना कुटुम्ब लेकर सिद्धपुर आकर अनहिलवाड़ा आया व अपने साले कृष्णदेवसे मिला ।
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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