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गुजरातका इतिहास |
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कहता है कि अमोघवर्ष शाका ७९९ व सन् ८७७ में जीवित था । ध्रुवके पीछे उसके पुत्र अकालवर्षने राज्य किया । जिसका नाम शुभतुंग भी था फिर उसके पुत्र ध्रुवद्धि ० ने फिर दंतिर्वमनके पुत्र अकालवर्ष, कृष्णने राज्य किया । इसी समय मान्यखेडमें राष्ट्रकूट अमोघवर्ष राज्य कर रहे थे जिन्होंने ६३ वर्ष राज्य किया । अब गुजरात राष्ट्रकूट वंश समाप्त हुआ, परंतु मान्यखेडके मुख्य वंश राष्ट्रकूटने फिर सन् ९१४ में दक्षिण गुजरातमें आधिपत्य
माया । जैसा नौसारीके दो ताम्रपत्रोंसे प्रगट है । जिसमें यह कथन है कि कृष्ण अकालवर्ष के पोते व जगतुंगके पुत्र राजा नित्यमर्ष इन्द्रने लाड़ देशमें नौसारीके पास कुछ ग्राम दान किये । (B. R. A S. XVIII 253.;
मान्यखेड़के अमोघवर्ष के पीछे अकालवर्षने ८८८ से ९१४ तक राज्य किया । मालूम होता है कि इस दक्षिणी कृष्णने गुजरातको लेलिया था, क्योंकि इस समयसे दक्षिण गुजरातको जो लड़के नामसे कहलाता था दक्षिण राष्ट्रकूटमें सदाके लिये शामिल कर लिया गया । शाका ८३२ का कपड़वंजका एक दानपत्र मिला है (Ep. Ind I 52 ) जिसमें लेख है कि महा सामंत कृष्ण अकालवर्ष प्रचंडके सेनापति चंद्रगुप्तके अधिकारमें प्रांतिके पास हर्षपुर या हर्सोल पर खेड़ा जिलेमें ७५० ग्राम थे ।
सन् ९७२ में गुजरात पश्चिमी चालुक्य राजा तैलप्पाके अधिकारमें चला गया जिसने वारप्पा या द्वारप्पा को सौंप दिया था । इसका युद्ध सोलंकी मूलराज अनहिलवाड़ा (९६१ - ९९७) के साथ हुआ था ।