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________________ १९६] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । जमें ६०७-८ में राज्य करता था । पुलकेशी द्वि०ने सन् ६३४ में नर्मदापर हर्षको विजय किया था। दद्दा तृ०को बाहुसहाय कहते थे । जयभट्ट तृ० को महासामंताधिपति कहते थे । इसके समयमें अरब लोगोंने हमला किया था जिसको नौसारीपर युद्ध करके पुलकेशी जनाश्रयने परास्त किया था । ७३४ के पीछे इनका पता नहीं चलता है। ___ (सं० नोट) इस वंशके राजाओंकी वीतराग आदिकी उपाधिसे अनुमान होता है कि शायद इस वंशके राजा जैनी हों। राष्ट्रकूटवंश-गुजरातमें ये लोग दक्षिणसे सन् ७४३में आए। ये अपनेको चंद्रवंशी या यदुवंशी कहते हैं। इनका मुख्यस्थान मान्यखेड (मलखेड) है जो शोलापुरसे दक्षिण पूर्व ६० मील है । इनका सबसे प्राचीन शिलालेख सन् ४५०का मिला है, जिस समय राजा अभिमन्यु राज्य करते हैं उसमें चार राजा दिये हुए हैं। मानान्केर देवराज भविष्य अभिमन्यु
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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