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________________ गुजरातका इतिहास। . [ १७६ दक्षिणी राज्यधानी सोपारा थी जो वेसीनके पास है। जहाजोंके लिये बंदर है। यह कोंकण व दक्षिण गुजरातका मुख्य व्यापार केन्द्र था। बौद्ध और जैन लेखोंसे प्रगट है कि अशोकके पीछे उसकी गद्दीपर उसका अंधा पुत्र कुणाल नहीं बैठा था किन्तु उसके दो पोतोंने अर्थात् दशरथ और सम्प्रतिने राज्य किया था। गया जिलेके बराबर और नागार्जुन पहाड़ियोंके लेखोंमें दशरथका नाम है । जैन लेखोंमें सम्प्रतिकी बहुत अधिक प्रशंसा है ( देखो हेमचंद्रकृत परिशिष्ट पर्व व मेरुतुंगकृत विचारश्रेणी)। यह कहा जाता है कि करीब २ सब प्राचीन जैन मंदिर राजा सम्प्रतिके बनवाए हुए हैं। जिनप्रभमूरि जैनाचार्यने पाटलीपुत्र कल्पग्रंथमें पाटलीपुत्रकी कथाएं दी है । उनमें एक स्थानपर है " कुणालमनुत्रिखंडभरताधिपः परमार्हतो अनार्य्यदेशेष्वपि प्रवर्तितश्रमणविहारः सम्पति महाराजाऽसौऽभवत् ।" इसका भाव यह है कि कुणालके पुत्र सम्प्रति थे जो तीन खंड भरतके राजा थे, परम अर्हत भक्त जैन थे । जिन्होंने अनार्य देशोंमें भी मुनियोंका विहार कराया । अशोकके पीछे दशरथ तो पूर्व भारतमें व सम्प्रति पश्चिम भारतमें राज्य करते थे, जहां जैन जाति अब भी विशेष फैली हुई है । यह संप्रति उज्जैनका भी राजा था। इसके पीछे मौर्य राजाका नाम नहीं सुन पड़ता है । सन् ५०० में मौर्य राजाओंका नाम मालवा और उत्तरी कोंकणमें झलकता है । संप्रतिने सन् ई० से १९७ वर्ष पूर्व तक राज्य किया।
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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