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________________ १३६ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । वर्ग है । बाहर २४ फुट है। चार बडे मोटे गोल खंभे हैं, उनपर टांडें लटक रही हैं । मंडप व मंदिरके द्वारोंपर हरतरफ द्वारपाल मुकुट सहित हैं। भूरे पाषाणका मंदिर है। इसके शिषरके पाषाणोंको होनावरके मामलतदारने दूसरे मंदिरमें ले लिया है। यहां नेमिनाथका मंदिर भी अच्छा है । मूर्ति बडी सुंदर व बडी अवगाहना की है। आसन गोल है । उसके पीछे शिल्पकारी अच्छी है आसनके किनारे कनड़ी अक्षरोंमें दो श्लोक हैं । श्री पार्श्वनाथके मंदिरमें बहुतसी मूर्तियां दूसरे मंदिरसे लाई गई हैं। उनमें एक पांच धातुकी बड़ी ही सुन्दर है। इसके पश्चिम एक बड़ा पाषाणका मकान है उसमें १२ दि० जैन मूर्तियें खड़गासन विराजमान हैं। कांदेवस्तीके मंदिरमें छत नहीं रही परंतु कृष्णवर्ण १पार्श्वनाथकी मूर्ति ४। फुट ऊंची है उस पर शेषफण बहुत ही सुन्दर कारीगरीके हैं। शिलालेखोंका वर्णन-श्री वर्धमान स्वामीके मंदिरमें (१) पाषाण ६ फुट ऊपर जिनमूर्ति है, दो पूजक हैं । नीचे गाय व बछडा है व लम्बा लेख है, (२) १ पाषाण ४ फुट लंबा ऊपर श्री जिनेन्द्र चमरेन्द्र सहित, बीचमें दो समुदाय पूजकोके हैं। हर तरफ १ ऊंची चौकी है। नीचे हर तरफ स्त्रियां पूजक हैं। वैसी ही चौकी है । (३) १ पाषाण ५ फुट लंबा दूसरेके समान करीब २ (४) मंदिरके पीछे भूमिमें दबी श्री पार्श्वनाथ मंदिरके पूर्वकोंनेमें तीन पाषाण खुदे हुए ऊपरके समान हैं । कादेवस्तीकी भीतके बाहर एक लेख ४ फुटका है। जरसप्पासे घाटकी तरफ जाते हुए ५ या ६ मीलपर एक
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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