SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ धाड़वाड़ जिला। [ १२५ नोट-पहले भागमें कथन है कि देवगणके सिद्धांत परगामी श्री देवेन्द्र भट्टारकके शिष्य मुनि एकदेवके शिष्य जयदेव पंडितको दान किया। नं० तीसरेमें है कि-मूलसंघ देवगणके श्री रामचंद्र आचार्यके शिष्य श्री विजयदेव पंडिताचार्यको दान किया गया जो जयदेव पंडितके गृहशिष्य थे। (२३) आदुर-हांगलसे पूर्व १० मील । यहां एक शिलालेख संस्कृतमें छठे चालुक्यराजा कीर्तिवर्मा प्रथम (सन् ५६७) का है जिसने जैन मंदिरको दान किया था। चौथा शिलालेख तेरहवें राष्ट्रकूट राजा कृष्ण द्वि० (सन् ८७५ से ९११) या अकालवर्षका है । जैसा कि लेखमें हैं । इसमें चिलकेतन वंशके महासामंतका वर्णन है जो वनवासी (१२०००) का स्वामी था । एक शिलालेख सन् १०४४का पश्चिमी चालुक्यराज्य सोमेश्वर प्रथमका है । इनके समयके ४० लेख सन् १०४२ से १०६८ तकके मिले हैं (Fleet's Canarese Dynasty) (२४) दम्बल-गड़गसे दक्षिण पश्चिम १३ मील एक प्राचीन नगर है । दक्षिणमें एक जीर्ण पाषाणका किला है जिसके भीतर एक जीर्ण जैन मंदिर है। (२५) देवगिरि-करजगीसे पश्चिम ६ मील। इसको त्रिपर्वत भी कहते हैं। यहां एक सरोवरको खोदते हुए सन् १८७५७६में कई ताम्रपत्र मिले हैं । ये सब प्राचीन कादम्ब राजाओं के दानपत्र हैं जो पांचवीं शताब्दीके करीब हुए थे। अक्षर पुरानी
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy