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११४ ] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक ।
थनानुसार ९ मी, १० वीं, ११ मी शताब्दी में यह बुन्देल - खण्डमें एक बलवान शाखा चेदीवंशकी थी । उनके वंशका संवत कालाचूरी या चेदी संवत कहलाता है- जो सन् ई० २४९ से चलता है। उनकी राज्यधानी त्रिपुरा पर थी । जो जबलपुर से पश्चिम ६ मील है । कालाचूरीके त्रिपुरा वंशके लोगोंने बहुत दफे राष्ट्रकूट और पश्चिमी चालुक्योंसे विवाह सम्बन्ध किये थे । इसी वंशकी दूसरी शाखा छठी शताब्दीमें कोन्कनमें राज्य करती थी, जहांसे पूर्वी चालुक्य राजा भंगलीशने - जो पुलकेशी द्वि० (६१०६३४ ) का चाचा था-भगा दिया था । कालाचूरी अपनेको हैहय कहते हैं और अपनी उत्पत्ति यदुवंश से कार्यवीर्य या सहस्रबाहु अर्जुनसे बताते हैं ।
पुरातत्व-धाड़वाड़ चालुक्य राजाओंके ढंगसे भरा हुआ है । पुरातत्वके मुख्यस्थान हैं । गड़ग, लाकडी, दम्बल, हावेरी, हांगल, अन्निगेरी, बन्कापुर, चन्ददामपुर, लक्ष्मेश्वर, नारेगल । इन सबों में बहुत सुन्दर पाषाणके मंदिर हैं जो ९ मी से १३ वीं शताब्दी तकके हैं। इनको जखनाचार्यका ढंग कहते हैं ।
जखनाचार्य एक राजकुमार था जिनके द्वारा अचानक एक का बध होगया था । इसके प्रायश्चित्तमें उसने बनारस से प कमोरिन तक मंदिर २० वर्ष में बनवाये ।
लिंगायत- इस जिलेमें चारलाख सेतीसहजार हैं ४३७००० । यह बात साधारण रीति से मानी जाती है कि लिंगायतों की उत्पत्ति १२ बारहवीं शताब्दी से है । जब एक धार्मिक सुधारक हैदरावादके कल्याणीके निवासी बासवने इस जातिकी प्रसिद्धि की और इसको