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________________ वीजापुर जिला। छत्र भंग हुआ तब सर्व जगत शत्रुओंके अन्धकारसे छागया, परन्तु उसके असह्य प्रतापके विस्तारसे पीड़ित होकर मानो प्रभात हो गया। उस आकाशमें जो भौरोंके समान काला था बहती हुई हवासे उड़ते हुए पताकाओंकी विजलीकी समान चमकसे तड़का हो गया । अवसर पाकर जब अप्पायिक पदधारी गोविन्द राजा (जो राष्ट्रकूटोंका राजा था ) जो उत्तर समुद्रका स्वामी था अपनी हाथियोंकी सेनाको लेकर पृथ्वीके विनय करनेको आया तब इस पुलकेशीकी सेनाओंके हाथोंसे-निसको पश्चिमके राजाओंने मदद दी थी-वह भयभीत हो गया और शीघ्र अपनी कृतिके फलका लाभ किया। ___ जब वह वनवासीको घेर रहा था जिसके किनारेपर *हंस नदी थी जो वरदा नदीके उच्च तरंगोंमें क्रीड़ा करती थी व जो नगर स्वर्गपुरीके समान था तब वह किला जो सूखी जमीनपर था चारों तरफसे उसकी सेनारूपी समुद्रसे ऐसा घिर गया मानों लोगोंको ऐसा मालूम होता था कि समुद्रके मध्यमें कोई किला है। वे लोग भी जिन्होंने गंगाका पानी पिया था और सात व्यसन त्याग दिये थे तथा लक्ष्मीको भी प्राप्तकर लिया था उसके प्रभावसे आकर्षित हो सदा उसके निकट सम्बन्धका अमृत पान करना चहते थे। कोंकणके देशोंमें उसकी आज्ञासे नियुक्त चंडदंडरूपी समुद्रकी तरंगोंसे मौर्यरूपी सरोवरके जलके भंडार शीघ्र ही वश करलिये ____* वर्तमानमें वरदा नदी वनवासी नगरके नीचे बहती है तथा हंस नदी किसी पुरानी धाराका पुराना नाम है। जो यहांसे ७ मील है व इसीकी उपनदी है।
SR No.007291
Book TitleMumbai Prant ke Prachin Jain Smarak
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherManikchand Panachand Johari
Publication Year1925
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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