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जैन धर्म का प्रचार
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महरगुल के अत्याचार से उत्पीडित हुए मारवाड़ निवासी विक्रम की छठी शताब्दी में गुजरात में आ बसे थे। पाटण की स्थापना से लेकर विक्रम की तेरहवीं तथा चौदहवीं शताब्दी पर्यन्त तो मारवाड़ प्रान्त से अनेक महाजन संघ के सद्गृहस्थ विपुल संख्या में जा जा कर गुजरात में निवास करने लगे थे। आज जो सूरत, भरुच, बड़ौदा, खम्भात, भावनगर और अहमदाबाद आदि नगरों में जैन ओसवाल, पोरवाल तथा श्रीमाल घनी संख्या में बसते हैं ये सब के सब मारवाड़ ही से गये हुए हैं। अपनी आवश्यक्ताओं को पूर्ण करने के लिए उन्हें मारवाड़ छोड़ कर वहाँ बसना पड़ा । विक्रम की सोलहवीं तथा सत्रहवीं शताब्दी तक तो मारवाड़ से कुलगुरु गुजरात में जा कर अपने श्रावकों की वंशावली लिख आया करते थे। उन वंशावलियों से स्पष्ट सिद्ध होता है कि मारवाड़ से जो जैनी गुजरात की ओर गये थे उनकी संख्या बहुत थी। इस अर्वाचीन काल में जो जैनधर्म का अभ्युदय गुजरात प्रान्त में विशेष दिखाई देता है उसका वास्तविक कारण यही है । इस प्रान्त के जैन वीरों की कामनीय कीर्ति की गाथाओं से इतिहास साहित्य आज भीशोभा पा रहा है शत्रुजयोद्धारक जावड़शाह पोरवाल वंशीय नानग लेहरी वीरदेव और विमलाशाह जिन्होंने पाटणराज की स्थापना के समय से आबू के मन्दिर निर्माण के समय तक अर्थात् तीनसौ वर्ष तक जैनधर्म की उन्नति करने में अपना सर्वस्व अर्पण कर दिया था । वीर वस्तुपाल तेजपाल उदायन बहाड़ चहाड़ मंत्री महामन्त्रियोंने जो जैन धर्म की सेवा की वह चिरकाल स्मरणीय है श्रीमान् देशलशाह, शत्रुजय का पन्द्रहवाँ उद्धारक धर्मवीर समरसिंह, सहारणपाल, सहजपाल आदि ने मुसलमानों की कट्टर शत्रुता के समय भी जैनधर्म को देदीप्यमान रक्खा था मंत्रीमंडल