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जैन धर्म का प्रचार
प्रकार से सिन्ध के खास जैनी आज नाम को भी नहीं रहे । किसी ने सच कहा है कि Misfortunes never come alone यानी श्राफतें कभी अकेली नहीं आतीं। जो दशा बङ्गाल तथा कलिङ्ग आदि के जैनियों की हुई थी वही दशा इस प्रान्त के जैनी लोगों की हुई।
(१०) कच्छ प्रान्त विक्रम के पूर्व की तीसरी शताब्दी में जैनाचार्य श्री कक्वसूरिजी महाराज ने इस प्रान्त में पदार्पण कर जैनधर्म का प्रचार प्रारम्भ किया था। कक्वसूरि महाराजने कच्छ निवासियों पर बड़ा भारी उपकार किया। उन्हें जैनधर्म के परमपवित्र कल्याणकारी मार्ग का पथिक बनाने वाले जैनाचार्य श्री कक्वसूरि ही थे। इनके पीछे इनके पट्टधर शिष्योंने भी प्रचार का कार्य इस प्रान्त में जारी रखा। इनमें आचार्य श्री देवगुप्तसूरिजी ही मुख्य प्रचारक थे । कच्छ के कोने कोने में जैनधर्म का दिव्य संदेश सुनाया गया था। लोगों ने इस धर्म को अपनाया भी खूब । इनके शिष्य तथा प्रशिष्यों और परम्परागत शिष्यों ने भी इसी प्रान्त में विहार किया था । इतिहास देखने से विदित होता है कि विक्रम की चौदहवीं शताब्दी तक तो इस प्रान्त में झगडूशाह जैसे दानवीर जैनी हो चुके हैं । ऐसे ऐसे नररत्नोंने इस प्रान्त में जन्म ले जैनधर्म को पाल कर खूब यश कमाया। वैसी जाहोजलाली इस प्रान्त की अब न रही पर जैनधर्म की कुछ न कुछ प्रवृत्ति तो इस प्रान्त में अबलों विद्यमान रही है । समय समय पर कई मारवाड़ी भी मारवाड़ से यहाँ आ बसे । यहाँ यति लोग भी गहरी संख्या में रहते थे। विक्रम की पन्द्रहवीं शताब्दी तक तो मारवाड़ से कुलगुरु जाकर अपने श्रावकों की वंशावली लिख आया करते थे जो कि अबतक भी विद्यमान है।