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जैन धर्म का प्रचार
उनके पट्टधर आचार्यश्री सिद्धसूरिजीने इस परम पवित्र लोक हितकारी एवं उपकारी जैनधर्म का जी-जान से प्रचार किया था।
आपको उच्च अभिलाषा थी कि पजाब जैसे प्रान्त में जो प्रचार का उत्तम क्षेत्र है खूब जोरों से प्रचार कार्य किया जाय । इस कार्य के सम्पादन करने में सूरिजीने प्रगाढ़ परिश्रम किया। जैन धर्म पञ्जाब में सर्वोच्च पद प्राप्त कर गया। ऐसा कौनसा कार्य है जो प्रयत्न और परिश्रम करने से सिद्ध नहीं होता ? वास्तव में सूरिजी को इस प्रचार कार्य में पूर्ण सफलता प्राप्त हुई। वंशावलियों को देखने से मालूम हुआ कि विक्रम की तेरहवीं शताब्दी में पजाब से एक बड़ा भारी संघ सिद्धगिरि की यात्रा के लिए आया था। इस विशाल आयोजन से विदित होता है कि उस समय पजाब में जैनियों की घनी बस्ती थी। यह धर्म पजाब में निरन्तर पाला गया इतना ही नहीं पर गज़नी और उनसे भी परे जैन धर्म का प्रचार था । आज जो जैनी इस प्रान्त में दृष्टिगोचर होते हैं उनमें से अधिकाँश मारवाड़ ही से गये हुये लोग हैं। - अब से थोड़े समय पहले पंजाब में जैनियों की विस्तृत बस्ती थी। आज जो जैन धर्म का अस्तित्व पंजाब प्रान्त में पाया जाता है यह वास्तव में जैनाचार्य श्री देवगुप्तसूरिजी एवं सिद्धसूरिजी के परिश्रम का ही परिणाम है । यह उन्हीं की कृपा का फल है कि आज लौं जैन धर्म की पताका पंजाब में फहराती रही है। ___(8) सिन्ध प्रान्त । विक्रम के पूर्व की तीसरी शताब्दी में प्राचार्य श्री यक्षदेवसूरि ने सिन्ध में प्रचार का झंडा रोपा और वहाँ के लोगों को विपुल संख्या में जैनी बनाया। आपश्री की व्यवस्था से जैन धमे की नींव इस प्रान्त में पड़ी तथा इनके