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जैन राजाओं का इतिहास
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प्रचार हुआ था आचार्य भद्रवाहु स्वामी ने इस प्रान्त में विहार कर जैन धर्म का प्रचार किया था विक्रम की पाँचवी शताब्दी से दशवी शताब्दी तक इस प्रान्त में जैन धर्म राष्ट्रीय धर्म माना जा रहा था बाद में भी पाण्ड्य वंश पल्लववंश कदम्बवंशी कल चूरीवंश के नृपति जैनधर्मोपासक ही नहीं पर जैन धर्म प्रचारक थे, विक्रम की नौवीं शताब्दी में राष्ट्र कुंट वंशी महाराज अमोघवर्ष जैन धर्म का कट्टर प्रचारक हुआ था । जिनके धर्मगुरु दिगम्बर आचार्य जिनसेन थे इस राजा ने अनेक जैन मन्दिर और जैनश्रामरणों के लिये गुफाए बनवाई थी । जिनके शिलालेख ताम्रपत्र दानपत्रादि बहुत से उपलब्ध है ।
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"प्राचीन जैन स्मरक'
(६०) नाणकपुर का राजा शत्रुशल्य - जैनराजा
आचार्य परमानन्दसूरि ने नाणकपुर में पधार कर राजा शत्रुशल्य को जैन धर्म की शिक्षा दीक्षा देकर जैन धर्मोपासक बनाया । इस नृपतिने जैन धर्म की खूब ही प्रभावना की जैन मन्दिर बनवा के पुन्योपार्जन किया ।
" जैन गौत्र संग्रह "
(६१) कालेर नगर के राव राखेचा - जैन राजा आचार्य देवगुप्तसूरि भू भ्रमण करते हुए एक बार कालेर नमर में पधारे वहाँ पर जीव हिंसा की घौर अधर्म प्रवृति चल रही थी । आचार्य श्री अनेक कठिनाइयों का सामना कर कह