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प्राचीन जैन इतिहास संग्रह
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इसी धराना में हुए जिनकी संतान आज लुनावतों के नाम से मशहूर है ।
“उपकेश गच्छ पट्टावलि” (५३) सक्खपुर नगर का राजा विजयवन्त जैनराजा आचार्य सर्वदेवसूरि एक समय विहार करते हुए संक्खपुर नगर में पधारे । राजा एवं प्रजा ने आपका सुन्दर स्वागत किया, आचार्यदेव ने राजा प्रजा को जैन धर्म की प्राचीनता एवं प्रमाकिता का खूब ही उपदेश दिया जिसका प्रभाव राजा प्रजा पर इस कदर हुआ कि उन्होंने मिथ्यात्व का त्याग कर जैन धर्म को स्वीकार कर श्रद्धा पूर्वक पालन कर स्वपर का कल्याण किया । " जैन गौत्र संग्रह नामक'
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(५४) भिन्नमल का राजा भान—जैन राजा आचार्य उदयप्रभसूरि एक समय भिन्नमाल नगर में पदार्पण किया, वहाँ का राजा भाण, आचार्य श्री का उपदेश हमेशा रुचीं पूर्वक श्रवण किया करते थे कई प्रकार की तर्क वितर्क के पश्चात् राजा ने जैनधर्म को स्वीकार कर उसका पालन और प्रचार किया इसका समय विक्रमी की आठवी शताब्दी का है इस नृपति ने उपकेशपुर के रत्नाशाह श्रेष्टि की पुत्री के साथ विवाह किया था, राजा भाग ने भिन्नमाल नगर से एक विराट् संघ शत्रुंजयादि तीर्थों की यात्रार्थ निकाला था जिसमें प्रचूरता से द्रव्य व्यय कर पुन्योपार्जन किया, जिस गच्छ के प्रतिबोधित श्रावकों को वंशावलिये उसी गच्छ वाले लिखे ऐसा प्रबन्ध भी इसी भूपति के शासन काल में हुआ इत्यादि ।
" जैन गौत्र संग्रह "