SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५१ जैन राजाओं का इतिहास (५१) त्रिभुवन नगर का राजा ......जैन राजा .. प्राचार्य कक्कसूरि के अनेक शिष्यों में मुनि शान्तिचन्द्र भी एक था एक समय आचार्य देव शान्तिचन्द्र से धर्म गौष्टी करते हुए कहा क्या शान्ति तुम भी किसी राजा को प्रतिबोध दे कर जैन मन्दिर बनावेंगा ? मुनि शान्तिचन्द्र ने इसे ताना समझ कर कहा हाँ प्रभु आपकी कृपा हो तो यह कार्य कठिन नहीं है पर मन्दिर की प्रतिष्ठा के लिये आपको पधारना होगा ? मुनि शान्तिचन्द्र कई मुनियों को साथ ले सूरिजी की आज्ञा लेकर विहार कर क्रमशः त्रिभुवन नगर में आये वहाँ के राजा को प्रतिबोध कर जैन धर्म की शिक्षा दीक्षा दे उनसे एक विशाल जैन मन्दिर बनवाया जब मन्दिर तैयार हो आया तो राजा के कर्मचारियों द्वारा आचार्य को आमन्त्रण पूर्वक बुलवा के उस मंदिर को प्रतिष्ठा करवाई । धन्य है ऐसे गुरु शिष्यों को कि उनके ताना माना में भी धर्म प्रचार की धगाश भरी हुई थी। (५२) सिन्ध देश का राव गोशल-जैनराजा प्राचार्य देवगुप्त सूरि धर्म प्रचार करते हुए एक समय सिन्ध प्रान्त में पधारे वहाँ का राव गोशल ( भाटी ) मिथ्यात्ववासित शिकार को जा रहा था आचार्य देवने उसको प्रतिबोध देकर जैन धर्मोपासक बनाया “कर्मेशूरा सो धर्मशूरा" इस युक्ति अनुसार उसने जैन धर्म का खूब प्रचार किया लुनाशाह जैसे दानी मानी * प्रतिष्टा येति सोगच्छत दुर्गे त्रिभुवनादि के । गिरौ भूपं प्रतिबोध्या, कारय जिन मन्दिरम् ॥ "उपकेशगच्छ च० श्लोक ६६
SR No.007288
Book TitlePrachin Jain Itihas Sangraha Part 02 Jain Rajao ka Itihas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGyansundar Maharaj
PublisherRatnaprabhakar Gyanpushpamala
Publication Year1936
Total Pages66
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy