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जैन राजाओं का इतिहास
जैन धर्म को स्वीकार कर लिया। नृपति ने अपने नगर में जैन मन्दिर बनाया और प्राचार्यश्री के कर कमलों से प्रतिष्टा कर वाई । जैन धर्म का प्रचार और स्वधर्मी भाईयों की वात्सल्यता में इस नृपति ने अच्छा नाम कमाया। वंशावली में इनका विस्तार से वर्णन किया है वह उपकेश गच्छ पट्टावलि में दिया जायगा । इनका सत्ता समय वी०नि० सं० ४०९ का है ।
“वंशावलियों” (२६ ) उज्जैन का महाराजा विदर्थ-जैनराजा
यह नृपति सम्राट् सम्प्रति का पुत्र और उसके उत्तराधिकारी था जिसने अपने पिता को मुवाफिक जैन धर्म का पोषण और प्रचार किया । इलका सत्ता समय वीर निर्वाण चौथी शताब्दिः ।
. "महान् सम्प्रति नामक ग्रन्थ" [२७] उज्जैन नगरी का राजा बलमित्र और
भानूमित्र-जैनराजा यह युगल नृपति भरुच्छ नगर के राजा थे पर जब गर्दभिल्ल का राज शकों ने छीन कर उज्जैन की गद्दी पर चार वर्षे राज किया था। बाद शकों से उज्जैन का राज बलमित्र भानूमित्र ने छीन लिया और वहां का राज किया यह नपति भी कालकाचार्य के परमोपासक और जैनधर्म के कट्टर प्रचारक थे। इनका समय विक्रम की पहली शताब्दि है
-- "प्रभाविक चारित्र"