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प्राचीन जैन इतिहास संग्रह
(प्रथम भाग)
- =[पाटलीपुर का इतिहास] TOPPEACE 3 दि तीर्थकर श्री ऋषभदेव प्रभु के शासन से नौवाँ
तीर्थकर श्री सुविधिनाथ प्रभु के शासन पर्यन्त
तो विश्वधर्म जैन ही था। सारे प्राणी दयाधर्म SEASESS की शीतल छाया में अपनी आत्मा का उत्थान कर परम शांति प्राप्त करते थे। नौवाँ तीर्थकर सुविधि-नाथ स्वामी का शासन विच्छेद होने पर जैन ब्राह्मणों के मन में मलीनता का प्रादुर्भाव हुआ। स्वार्थ के वशीभूत हो कर उन ब्राह्मणों ने अपने ग्रन्थों में परिवर्तन करना शुरू किया। यहाँ तक कि जो जैन ब्राह्मणों के काम को सुचारुरूप से सम्पादन कराने के हेतु से भगवान ऋषभदेव स्वामी के आदेशानुसार भरत महाराज ने ४ आर्य वेदों का निर्माण किया था पर पिच्छेसे नकली ब्राह्मणों ने उन्हें असली रूप में नहीं रक्खा। ' ___ उपरोक्त, वेदों को बनाने का परम पुनीत उद्देश्य तो यह था कि जैन ब्राह्मणलोग समाज को आचार, व्यवहार तथा संस्कार से सुधार कर सत्कार पावें, पर ब्राह्मणों ने व्यक्तिगत स्वार्थ के लिये