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पाटलीपुर का इतिहास सम्प्रति नरेशने अवश्य अनार्य देशों में जैन धर्म का प्रचुर प्रचार किया था। उसने जैन मन्दिरों की प्रतिष्ठा भी करवाई थी। राजा सम्प्रति के राज्य काल में जैन धर्म का प्रचार आर्य और अनार्य दोनों देशों में था।
उस समय सब जैनी मिलाकर चालीस प्रोड़ की संख्या में थे । क्यों न हों ? जब शिशुनाग वंशी नन्दवंशी और मौर्य चन्द्रगुप्त. बिन्दुसार और महाराजा सम्प्रति जैसे प्रतापशाली नृपतिगण जैन धर्म के प्रचार के हेतु कटिबद्ध थे, ऐसी दशा में चालीस क्रोड जैनों का होना किसी भी प्रकार से आश्चर्यजनक नहीं है । अर्वाचीन समय के इतिहासकार भी हमारी उस बात की पुष्टि करते हैं कि किसी समय जैनियों की संख्या चालीस क्रोड़ के लगभग थी यथा-. . ___ "भारत में पहिले ४०००००००० जैन थे। इसी मत से निकल कर लोग अन्य मतों में प्रविष्ट होने लगे। इसी कारण से इनकी संख्या घट गई है। यह धर्म अति प्राचीन है। इस धर्म के नियम सब उत्तम हैं जिनसे देश को असीम लाभ पहुँचा है।"
-वाबू कृष्णमालाल बनर्जी । मौर्य मुकुटमणि त्रिखण्डभुक्ता महाराजा सम्प्रति ने जैन धर्म की बहुत उन्नति की। जैन इतिहासकारों ने इन्हें अनार्यदेश तक में जैन धर्म प्रचार करने वाले अन्तिम राजर्षि की योग्य एवं उचित उपाधि दी है । सम्प्रति नरेश का इतिहास सुवर्णाक्षरों में लिखने योग्य है । आप की धवल कीर्ति आज भी विश्वभर में