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पाटलीपुर का इतिहास
के हित गुफाएँ बनाने की भी उसने योजना तथा व्यवस्था की । बुद्ध ने तो केवल अपने मत का कलेवर ( देह ) मात्र ही तैयार किया था पर उसमें जीवन प्रदान कर उसे जगाने का कार्य यदि किसीने प्रयत्न जी तोड़ करके किया तो अशोक ने किया । ठीक उसी तरह से जिस प्रकार इसके पिता और पितामह विन्दुसार चन्द्रगुप्तने जैन धर्म का प्रचार किया था उसी प्रकार अशोकने बौद्ध धर्म का प्रचार किया । किन्तु शोक में एक बात की बड़ी खूबी थी वह दूसरे वेदान्तियों या बौद्धों की तरह दूसरे धर्मवालों से जातीय शत्रुता न तो रखता था न रखनेवालों को पसंद करता था। दूसरे मतवालों की ओर तो वह देखता भी नहीं था पर जैनियों के प्रति तो उसे स्वाभाविक सहानुभूति थी । अशोक ने अपनी शेष आयु धर्म प्रचार एवम् शांति से ही व्यतीत की । अशोक के पुत्रों में दो मुख्य थे - एक कुणाल और दूसरा वृहद्रथ ( दशरथ )
अशोकने कुणाल को उज्जैन भेज दिया था । वहाँ उसकी सौतेली मा ने षट्यंत्र के प्रयोग से उसे अंधा कर दिया पर कृपालु अशोक ने, इतना होने पर भी उसे उज्जैन में ही रक्खा । इधर पाटलीपुत्र में अशोक के पीछे उसका पुत्र वृहद्रथ सिंहासनारूढ़ हुआ । यह राजा निर्बल था अतएव मौर्यवंश का प्रताप फीका पड़ने लगा । राजा को निस्तेज देखकर उसके कपटी मंत्रीने साहस कर एक दिन वृहद्रथ को जान से मारडाला ।
राजा वृहद्रथ की हत्या करनेवाला पुष्पमन्त्री वृहस्पति के उपनाम से मगध देश की राजगद्दी पर अधिकार कर बैठा । बृहस्पति बहादुर एवं कार्य कुशल व्यक्ति था । यह ब्राह्मण धर्मी
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