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________________ ७४ से जो उपर्युक्त चार शाखाएं निकली इन का समय ईसा पूर्व तीसरी चौथी शताब्दी ठहरता है । इससे बंगाल, बिहार, उड़ीसा से पाये जाने वाले जैन स्मारक तथा मूर्तियां ईस्वी पूर्व तीसरी शताब्दी मौर्य काल से लेकर कुशान काल, गुप्त काल इत्यादि को व्यतीत करते हुए ईसा की तेरहवीं शताब्दी तक की हैं। जिस में जैन तीर्थंकरों की मूर्तियाँ नग्न और अनग्न दोनों तरह की हैं। तथा ऐसा भी ज्ञात होता है कि कलिंगदेशाधिपति चक्रवर्ती खारवेल द्वारा निर्मित हाथीगुफ़ा आदि जैन गुफ़ाएं भी इन्हीं 'निर्ग्रथों' के उपदेश से ही तैयार कराई गयी होंगी। क्योंकि खारवेल के हाथीगुफ़ा के शिलालेख से ज्ञात होता है कि उसने जैन मुनियां को वस्त्रदान भी दिये थे। जिन मुनियों को चक्रवर्ती खारवेल ने वस्त्र दान दिये थे वे जैन श्व ेताम्बर मुनि इन उपर्युक्त चारों शाखाओं में से होने चाहिये । खारवेल का समय ईसा पूर्व पहलो अथवा दूसरी शताब्दी है और इन शाखाओं की स्थापना ईसा पूर्व चौथी शताब्दो में हो चुकी थी ! खेद का विषय है कि बंगालदेश से प्राप्त प्राचीन जैन मूर्तियों के सिहासनों पर खुदे हुए लेखों को अभी तक पुरातत्ववेत्ताओं ने पढ़ने का कष्ट नहीं उठाया । उनकी ऐसी उपेक्षावृत्ति से अभी तक बंगाल का जैनधर्म सम्बंधी प्राचीन इतिहास प्रकाश में नहीं आ सका । हमारी यह धारणा है कि जब ये लेख पढ़े जायेंगे तब जैन इतिहास पर बहुत सुन्दर प्रकाश पड़ेगा । पी० सी० चौधरी Jaina Antiquities in Manbhum में लिखते हैं कि : "A number of inscriptions on the pedestals of some of the images have been found. They have not yet been properly deciphered or studied. A proper
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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