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__ इन उपयुक्त प्रमाणों से भी यह स्पष्ट है कि श्वेतांबरों को तीर्थंकर की नग्न अवस्था की मूर्ति भी वैसे ही मान्य है जैसे कि अनग्न इसी लिये वे तीर्थंकर को अनग्न तथा नग्न दोनों प्रकार की मूर्तियों की प्रतिष्ठा कराकर उन की पूजा अर्चा करते हैं।
एवं इस "सभानाथ' की मूर्ति के इर्द-गिर्द जो गोलाकार प्रभामंडल, विद्याधरों द्वारा फूलम लाए तथा पुष्प, साजबाज तथा चार जुड़े हाथों के बीच में तीन छत्र इत्यादि चिन्ह अंकित है वे तोर्थंकर के आठ प्रातिहार्यों के चिन्ह हैं। तीर्थंकर को ये प्रातिहार्य केवलज्ञान होने के बाद होते हैं । उन के नाम ये हैं :
"अशोकवृक्षः सुरपुष्पवृष्टिर्दिव्यध्वनिश्चामरमासनं च । भामंडल दुन्दुभिरातपत्रं सत्प्रातिहार्याणि जिनेश्वराणाम् । १।
अर्थ :-तीर्थंकरों के १-आशोकवृक्ष, २-देवताओं द्वारा पुष्पवृष्टि ३-दिव्यध्वनि, ४-चामर, ५-सिंहासन, ६-भामंडल, ७-दुन्दुभि, ८-छत्र; ये आठ वस्तुएं (तीर्थंकर के साथ प्रतिहारी के समान होने से) प्रातिहार्य हैं। - .... अतः इस उपर्युक्त मूर्ति में जो १. गोलाकार प्रभामंडल (भामंडल), २-विद्याधरों द्वारा पुष्पमालायें तथा पुष्प (पुष्प वृष्टिी, ३-साज बाज़ (दुन्दुभि), ४-चार जुड़े हुए हाथों के बीच में छत्र, ५-दो इन्द्र चामर ले कर खड़े हैं (चामर), ६-बैठने का स्थान (सिंहासन) इत्यादि चिन्ह अंकित हैं।
इस से यह स्पष्ट है कि यह मूर्ति आठ प्रातिहार्य सहित केवलज्ञान अवस्था की प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ भगवान की सिर पर बालों की जटाओं सहित ध्यानावस्था में अन्य