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____बंगालदेश के दीनाजपुर जिलांतर्गत सुरोहोर से प्राप्त ‘सभानाथ' की जिस चित्तरंजक नग्न मूर्ति का वर्णन हम पहले कर आये हैं वह मूर्ति भी श्वेताम्बर जैनों की मान्यता के अनुकूल है। किन्तु दिगम्बरों की मान्यता के प्रतिकूल है । क्योंकि दिगम्बरों को तीर्थंकर के सिर पर बाल होना सर्वथा अमान्य है ।
___यह “समानाथ” की नग्न मूर्ति प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभनाथ की है । "कल्पसूत्र' में श्री ऋषभनाथ ने जब दीक्षा ग्रहण की थी उस समय का वर्णन इस प्रकार है :
____ “यावत् आत्मवैव चतुर्मौष्टिकं लोचं करोति, चतुस्टभिमुष्टिभिर्लोचे कृते सति अविशिष्टां एकां मुष्टिं सुवर्णवर्णयोः स्कन्धयोरुपरि लुठंति कनककलशोपरि विराजमानानां नीलकमलमिव विलोक्य हृष्टचित्तस्य शक्रस्य
आग्रहेण रक्षत्वान्"। (कल्पसूत्र व्या० ७ पृ०१५१ देवचन्द्र लालभाई ग्रंथांक ६१)
___ अर्थात् श्री ऋषभनाथ प्रभु ने गृहत्याग कर दीक्षा ग्रहण करते समय ''अपने आप चार-मुष्टि लोच की । चार-मुष्टि लोच कर लेने पर सोने के कलश पर विराजमान नीलकमल-माला के समान बाकी रहे हुए मुष्टि प्रमाण सुनहरी बालों को प्रभु के कंधों पर गिरते हुए देख कर प्रसन्न चित्त वाले इन्द्र के आग्रह करने से प्रभु ने (अपने सिर पर) रहने दिये।"
इस से यह बात भी स्पष्ट हो जाती है कि यह मूर्ति जिसे "सभानाथ" की मूर्ति के नाम से उल्लेख किया गया है, वह प्रथम तीर्थकर श्री ऋषभनाथ की ही है और उनके मस्तक पर जो जटाएं हैं वे पांचवी मुष्टि वाले छोड़े हुए बालों का आकार है । (देखें चित्र नं०१)
परन्तु दिगम्बरों की मान्यता ऐसी नहीं है। उनका कहना है कि ऋषभनाथ से लेकर महावीर पर्यन्त सब तीर्थंकरों ने पंचमुष्टि