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________________ नहीं है । अर्थात् जैनधर्म बंगाल देश से कैसे विलोप पा गया इस का भोट देवेर सेवा हते संसार बाढ़ाय, पार्श्वनाथ दरश हते मुक्ति पद पाय ।। तुमि०।। कहा केउ ना डाके प्रभु बाटन (रत्न) देवय (देय ) मुनीश करे कथा किंवा इन्द्र करे कत सेवा ।। तुमि० ।। हासि प्रभु देखा पाय, भाग्य करे कति, उग्र पुण्य हइते सेवक दर्शन पाति ।। तुमि० ।। सारांश यह है कि बौद्धों और अार्य-ब्राह्मणों के प्रभाव से, जैन श्रमणों के बंगालदेश में विहार के अभाव से एवं मागधी लिपि के बंगला लिपि में परिवर्तित हो जाने से श्रावक लोग अपने प्राचीनतम जैनधर्म को छोड़ कर हिन्दू और बौद्धधर्मानुयायी हो गये हैं। तो भी दूसरी हिन्दू जातियों से इन मे जैनधर्म की अाचार सम्बन्धी अनेक विशेषताएं आज भी विद्यमान हैं। जिस से आज भी हिन्दुओं से वे भिन्न प्रतीत होते हैं । ( अनुवादक ) * बंगाली भाषा के इतिहास सम्बन्धी विश्लेषण करते हुए बंगाली विद्वानों ने लिखा है कि "बंगला भाषार उत्पत्ति मागधो हइतेहोलो।" अर्थात् बंगाली भाषा की उत्पत्ति मागधी भाषा से हुई है । तथा इन का यह भी कथन है कि आज से लगभग एक हजार वर्ष पहले मागधो लिपि से बंगाली लिपि का निर्माण कर सर्व प्रथम बंगाली भाषा में पद्य की रचना की गई तत्पश्चात् गद्य की रचना हुई । यह बात ध्यान में देने योग्य है कि मागधी जैनागमों की भाषा है तथा जैनागम प्रायः पद्यात्मक हैं। इस लिये ऐसा ज्ञात होता है कि मागधी लिपि के बंगाली लिपि में परिवर्तित हो जाने से बंगाली जनता जैनागमों के पठन पाठन से वंचित हो गई जिस के फलस्वरूप धीरे धीरे वह जैनधर्म को भूल गई तथा अन्य धम संप्रदायों में परिवर्तित हो गई।
SR No.007285
Book TitleBangal Ka Aadi Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPrabodhchandra Sen, Hiralal Duggad
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1958
Total Pages104
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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